पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक पिता की ओर से बेटी की कस्टडी को लेकर दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए उसे महीने में दो दिन दो-दो घंटे के लिए बेटी से मिलने की अनुमति का आदेश दिया है। अपने आदेश में हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि कोई व्यक्ति समाज की नजर में बुरा हो तो इसका मतलब यह नहीं कि अपनी औलाद के लिए भी वह बुरा होगा।याचिका दाखिल करते हुए मोहाली निवासी व्यक्ति ने हाईकोर्ट को बताया कि उसकी शादी 2008 में हुई थी। 2012 में इस विवाह से एक बेटी ने जन्म लिया। कुछ समय बाद उसका पत्नी के साथ रिश्ता बिगड़ गया और दोनों अलग रहने लगे। बेटी की कस्टडी मां के पास ही थी। बच्ची की कस्टडी के लिए उसने यह याचिका दाखिल की है। याचिका का विरोध करते हुए बच्ची की मां ने कहा कि याची नशे का आदी है और उसका इलाज और पुनर्वास अभी तक नहीं हुआ है। ऐसे में उसे बच्ची की कस्टडी या मिलने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि बच्चे की हिरासत को लेकर पति-पत्नी एक दूसरे पर किसी भी हद तक आरोप लगा देते हैं। इस मामले में हम आरोपों की सत्यता पर नहीं जाना चाहते। एक पुरुष या महिला प्रासंगिक रिश्ते में किसी के लिए बुरे हो सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपने बच्चे के लिए बुरे हों।एक मां या पिता, सामाजिक दृष्टि से नैतिक रूप में बुरे हो सकते हैं, लेकिन वह माता-पिता बच्चे के लिए अच्छे हो सकते हैं। तथाकथित नैतिकता समाज द्वारा अपने लोकाचार और मानदंडों के आधार पर बनाई जाती है और जरूरी नहीं कि यह माता-पिता और बच्चे के बीच प्रासंगिक संबंधों में प्रतिबिंबित हो। इन टिप्पणियों के साथ ही हाईकोर्ट ने पिता को बेटी से माह में दो बार मिलने की अनुमति दी है। एक बार पिता किसी सार्वजनिक स्थान पर तो एक बार अपनी पत्नी के घर जाकर बेटी से मिल सकेगा।

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