भारतीय सेना में सेवा देने के बाद पंजाब सरकार की नौकरी के दौरान 1993 में बर्खास्त किए गए अधिकारी की 30 साल की कानूनी लड़ाई आखिरकार रंग लाई। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने के 1993 के फैसले को अवैध करार देते हुए इसे रद्द कर दिया है। साथ ही उसी दिन से सेवा में लेने, 2003 में रिटायरमेंट की आयु तक वेतन व अन्य लाभ देने और रिटायरमेंट के बाद पेंशन लाभ जारी करने का आदेश दिया है।संगरूर निवासी ने दायर की थी याचिकायाचिका दाखिल करते हुए संगरूर निवासी रामेश्वर दास ने बताया कि वह 30 नवंबर 1962 से 26 मई 1970 तक भारतीय सेना में थे। इसके बाद 1974 में पंजाब सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में ज्वॉइन किया। इसके बाद डेपुटेशन पर पंजाब स्टेट्स सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन में इंस्पेक्टर के तौर पर संगरूर के लहरागागा में जिम्मा संभाला।1984 में याची को वापस उसके मूल विभाग में भेज दिया गया। 1986 में उसे कारण बताओ नोटिस जारी कर बर्खास्त कर दिया गया और आरोप लगाया गया कि उसके सुपरविजन में 12850 क्विंटल अनाज कम हो गया। इसके बाद जब जांच आरंभ हुई तो याची को दोषी पाया गया और 1993 में बर्खास्त कर दिया गया।बर्खास्तगी के आदेश में न्याय के सिद्धांत का पालन नहींबर्खास्तगी के आदेश पर याची ने अपील की। अपील में उस व्यक्ति को फैसले का जिम्मा सौंप दिया, जिसने पहली जांच में याची के खिलाफ गवाही दी थी। याची ने इस पर आपत्ति जताई और साथ ही इस पर भी कि फैसले का जिम्मा केवल सरकारी नौकर को ही दिया जा सकता है, जबकि याची के मामले में यह कॉर्पोरेशन का कर्मचारी था।हाईकोर्ट में यह मामला 1995 से विचाराधीन था और अब हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याची को बर्खास्त करने की प्रक्रिया सही नहीं थी और इसके साथ ही उसकी बर्खास्तगी के आदेश में न्याय के सिद्घांत का पालन नहीं किया गया। ऐसे में हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करते हुए याची को सभी वित्तीय सेवा लाभ, रिटायरमेंट लाभ जारी करने का आदेश दिया है।

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