नशा तस्करी के मामले में दोषी करार देने और 10 साल की सजा के आदेश को हाईकोर्ट ने रद्द करते हुए याची को निर्दोष करार दिया है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने आदेश में पुलिस की कहानी को विश्वास लायक नहीं माना और कहा कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास प्रतिबंधित वस्तु है, वह दिन के समय सड़क के किनारे सबको दिखाई देने वाले खुले स्थान पर बैठे तस्करी की सामग्री नहीं तैयार करेगा।

याचिका दाखिल करते हुए कश्मीर सिंह ने बताया कि मानसा पुलिस ने उसे 2010 में एनडीपीएस मामले में गिरफ्तार कर एक किलो अल्प्राजोलम की रिकवरी दिखाई थी। इस मामले में मानसा की अदालत ने उसे दोषी मानते हुए 23 अक्तूबर, 2013 को 10 साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। पुलिस की कहानी के अनुसार वे पेट्रोलिंग ड्यूटी पर थे और याची उन्हें सड़क किनारे कुछ पैकिंग तैयार करते मिला था। शक के आधार पर उसे रोक जांच शुरू की गई और याची के पास से नशीली सामग्री बरामद हुई।

हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में पुलिस की जांच बेहद निम्न स्तर की थी। जहां से गिरफ्तारी हुई वहां से एक किलोमीटर गांव मौजूद था लेकिन तलाशी के लिए किसी स्वतंत्र गवाह को शामिल नहीं किया गया। शिकायतकर्ता पुलिस अधिकारी को ही इस मामले में जांच अधिकारी बनाया गया जो सही नहीं था। इसके साथ ही सैंपल जांच के लिए भेजने में 10 दिन की देरी की गई जिसका कारण स्पष्ट नहीं है।

इसके साथ ही पुलिस की कहानी भी विश्वसनीय नहीं है। पुलिस के अनुसार याची सड़क किनारे नशे की छोटी थैलियां तैयार कर रहा था। कोई भी व्यक्ति खुले में इस प्रकार की आपराधिक गतिविधि नहीं करेगा। किसी अपराधी की स्वाभाविक प्रवृत्ति गुप्त रूप से और छिपकर ऐसे गैरकानूनी कार्य करने की होती है। ऐसे में इन टिप्पणियों के साथ ही हाईकोर्ट ने याचिका को मंजूर करते हुए याची को बरी कर दिया।

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