सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में रिटायर होने वाले जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि जजों की नियुक्ति वाला कॉलेजियम सिस्टम ढंग से काम करता है, इस बात का कोई तथ्य नहीं है। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए बने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को कभी काम करने का मौका नहीं दिया गया, जिससे राजनीतिक हलकों में नाराजगी पैदा हुई और उच्च न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज में बाधा उत्पन्न हुई।
कॉलेजियम पर क्या बोले?
समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा को दिये इंटरव्यू में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश संजय किशन कौल ने कहा, ‘अगर लोग कहते हैं कि कॉलेजियम सुचारू रूप से काम करती है, तो यह अवास्तविक होगा क्योंकि यह कोई तथ्य नहीं है। इसका उदाहरण, ऐसी नियुक्तियों की संख्या से दिखता है जो लंबित हैं। तमाम नाम, जिनकी पहले सिफारिश की गई थी वो लंबित पड़े हैं।
ऐसे में हमें यह स्वीकार करना होगा कि प्रणाली में दिक्कत है। अगर समस्या के प्रति अपनी आंखें बंद कर लेंगे, तो हम समाधान तक नहीं पहुंच पाएंगे। बीते 25 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले न्यायमूर्ति कौल, एक साल से अधिक समय तक सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सदस्य थे।
जस्टिस कौल ने कहा कि वर्तमान में कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है और इसे उसी रूप में लागू किया जाना चाहिए, जैसा है। अगर संसद त्रुटि पाए जाने का संज्ञान लेते हुए कल अपने विवेक से कहती है कि कोई अन्य प्रणाली होनी चाहिए, तो ऐसा करना उसका काम है, हम ऐसा नहीं कर सकते।
NJAC पर क्या बोले?
जस्टिस संजय किशन कौल ने मोदी सरकार द्वारा लाए गए NJAC पर भी अपनी राय रखी। कहा, ‘एनजेएसी को कम से कम प्रयोग के लिए लंबित रखा जा सकता था। इसे कभी भी काम करने का मौका नहीं दिया गया। जब इसे रद्द किया गया तो राजनीतिक हलकों में गुस्सा था कि संसद के एक सर्वसम्मत निर्णय को इस तरह से खारिज कर दिया गया और न्यायाधीश व्यवस्था को बदलने नहीं दे रहे हैं। इससे एनजेएसी के बाद (कॉलेजियम) प्रणाली के कामकाज में कुछ बाधा आई।
आपको बता दें कि साल 2014 में सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम बनाया था। एनजेएसी को न्यायिक नियुक्तियां करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसमें CJI, उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और प्रधान न्यायाधीश द्वारा नामित दो अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति, प्रधानमंत्री तथा लोकसभा में नेता विपक्ष शामिल थे।
हालांकि, अक्टूबर 2015 में उच्चतम न्यायालय ने एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।