दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी यौन-अपराध पीड़िता को ‘दो तरफा वीडियो-कॉन्फ्रेंस’ के जरिए गवाही की अनुमति देना किसी आरोपी के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के खिलाफ नहीं है, जबकि पीड़िता को ऐसी सुविधा से इनकार करने से वह न्याय तक पहुंच से वंचित हो जाएगी।

इसके साथ ही उसने निचली अदालत के उस फैसले को कायम रखा, जिसमें सामूहिक बलात्कार पीड़िता को प्रत्यक्ष रूप से मौजूद रहने के लिए जोर नहीं देने को कहा गया है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि ‘दो-तरफा वीडियो-कॉन्फ्रेंस’ में आरोपी, पीड़ित, अभियोजक, बचाव पक्ष के वकील और साथ ही न्यायाधीश- सभी की भागीदारी सुनिश्चित होती है।

उच्च न्यायालय ने अपने एक हालिया आदेश में कहा कि यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि दो-तरफा वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिए साक्ष्य की रिकॉर्डिंग की अनुमति देना याचिकाकर्ताओं को निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित करने के समान नहीं होगा। हालांकि, इससे इनकार करना पीड़िता को न्याय तक पहुंच के अधिकार से वंचित करने के समान होगा।

उच्च न्यायालय सामूहिक बलात्कार के दो आरोपियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। आरोपियों ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें पीड़िता को प्रत्यक्ष रूप से अदालत में बुलाने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। पीड़िता अमेरिकी नागरिक है और 2019 की कथित घटना के समय 23 वर्ष की थी।

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