दिल्ली हाईकोर्ट ने यूजीसी विनियम 2018 द्वारा शासित विश्वविद्यालयों में अनुबंध के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक याचिका के जवाब में नोटिस जारी किया है। याची सौरव नारायण का तर्क है कि दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) तथा दूसरे विश्वविद्यालय, स्थायी शिक्षण कर्मचारियों के पदों पर रिक्तियां होने पर भी अस्थायी आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करके नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने लंबे से जारी पक्षपातपूर्ण व्यवस्था को समाप्त करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और अन्य शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए अन्य उपाय) विनियम, 2018 के खंड 13 को सख्ती से लागू करने की मांग भी की है। यह खंड यह निर्धारित करता है कि शिक्षकों को अनुबंध के आधार पर केवल तभी नियुक्त किया जाना चाहिए जब अत्यंत आवश्यक हो।
35% पद गलत तरीके से भरे गए
याचिकाकर्ता सौरव नारायण ने विशेष रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि संकाय पर प्रकाश डालते हुए बताते है कि विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार स्थायी और नियमित आधार पर शिक्षण कर्मचारियों के लिए 287 स्वीकृत पदों में से केवल 129 भरे हुए हैं। याचिकाकर्ता का दावा है कि यूजीसी विनियम 2018 का उल्लंघन करते हुए अकेले अक्टूबर 2023 में 35 प्रतिशत से अधिक शिक्षकों (अतिथि संकाय) को अनुबंध या अस्थायी आधार पर भर्ती किया गया था।
SC भी जता चुका है चिंता
याचिकाकर्ता ने लोकसभा प्रश्न पर भारत सरकार के जवाब का हवाला दिया, जिसमें 1 अप्रैल 2022 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षण पदों पर 900 रिक्तियों का खुलासा किया गया था। याची का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों जैसे संस्थानों द्वारा संविदा शिक्षकों पर अत्यधिक निर्भर होने पर चिंता जताई थी।
अगली सुनवाई 13 मार्च को
याचिकाकर्ता जिसने याचिका दायर करने से पहले इस मुद्दे पर दो अभ्यावेदन दिए थे, का आरोप है कि कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसकी बजाय, दिल्ली विश्वविद्यालय ने 11 अक्टूबर 2023 को विधि संकाय से संबंधित अतिथि संकाय के 70 पदों का विज्ञापन दिया। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने मामले की अगली सुनवाई 13 मार्च 2024 को तय की है।