उत्तर प्रदेश में चार साल से कोर्ट कचहरियों में चक्कर लगा रहे 69000 शिक्षक भर्ती विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिलहाल हाईकोर्ट का वो फैसला लागू नहीं होगा जिसमें हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 69000 शिक्षक भर्ती में बनाई गई मेरिट लिस्ट को रद्द कर 3 महीने में नई मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और ⁠हाईकोर्ट में पक्षकारों को भी नोटिस जारी करके जवाब मांगा है। कोर्ट ने पक्षकारों से अधिकतम सात पन्नों में लिखित दलील का संकलन देने को कहा है। पीठ ने 23 सितंबर को अगली सुनवाई तय की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें हाईकोर्ट के एकल जज पीठ और खंडपीठ के फैसले के अध्ययन के लिए वक्त भी चाहिए। इलाहाबाद HC ने अपने फैसले में जून 2020 और जनवरी 2022 के सलेक्शन लिस्ट को रद्द करते हुए यूपी सरकार का आदेश दिया था कि वो 2019 में हुए (ATRE)  सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा के आधार पर 69 हज़ार शिक्षको के लिए नए सलेक्शन लिस्ट तीन महीने में जारी करें।

हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर कोई आरक्षित वर्ग का कैंडिडेट जनरल कैटेगरी के बराबर मेरिट हासिल कर लेता है तो उसका सलेक्शन जनरल कैटगरी में ही माना चाहिए। HC के इस आदेश के चलते यूपी में बड़ी संख्या में नौकरी कर रहे शिक्षकों पर नौकरी खोने का खतरा मंडराने लगा था।

क्या है पूरा मामला और कहां से शुरू हुआ विवाद

उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश सरकार थी, तब 1 लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित कर दिया गया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और समायोजन को रद्द कर दिया गया था। यानी अखिलेश सरकार ने जिन शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक बना दिया था, वह फिर से शिक्षामित्र बन गए। अब इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1 लाख 37 हजार पदों पर भर्ती का आदेश योगी सरकार को दिया। योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हम एक साथ इतने पद नहीं भर सकते हैं। फिर सुप्रीम कोर्ट ने दो चरण में सभी पदों को भरने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद योगी सरकार ने 2018 में पहले 68500 पदों के लिए वैकेंसी निकाली। इसके बाद दूसरे चरण की भर्ती थी 69000 सहायक श‍िक्षक भर्ती।

कहां से शुरू हुआ विवाद?

69 हजार सहायक श‍िक्षक पदों के लिए न‍िकली इस भर्ती की परीक्षा 6 जनवरी 2019 को हुई। इस भर्ती के लिए अनारक्षित की कटऑफ 67।11 फीसदी और ओबीसी की कटऑफ 66।73 फीसदी थी। इस भर्ती के तहत करीब 68 हजार लोगों को नौकरी मिली।

लेकिन यहीं से यह सवाल उठा कि 69 हजार भर्ती में आरक्षण न‍ियमों को लेकर अनदेखी की गई। बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का पालन सही से नहीं किया गया। 69000 भर्ती के अभ्यर्थी जो इस व‍िरोध के साथ आंदोलन के लिए सड़क पर उतरे, उनका कहना था कि इस नियमावली में साफ है कि कोई ओबीसी वर्ग का अभ्यर्थी अगर अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से अधिक नंबर पाता है तो उसे ओबीसी कोटे से नहीं बल्कि अनारक्षित श्रेणी में नौकरी मिलेगी। यानी वह आरक्षण के दायरे में नहीं गिना जाएगा।

इसके बाद से 69 हजार शिक्षक भर्ती का पेच उलझ गया। आंदोलनरत अभ्यर्थियों ने दावा किया कि 69 हजार शिक्षक भर्ती में ओबीसी वर्ग को 27% की जगह मात्र 3।86% आरक्षण मिला यानी ओबीसी वर्ग को 18598 सीट में से मात्र 2637 सीट मिलीं। जबकि उस वक्त सरकार का कहना था कि करीब 31 हजार ओबीसी वर्ग के लोगों की नियुक्ति की गई।  सरकार के इस बयान पर अभ्यर्थियों ने बेसिक शिक्षा नियमावली-1981 का तथा आरक्षण नियमावली 1994 का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी वर्ग के जिन 31 हजार लोगों को नियुक्ति दी गई है, उनमें से करीब 29 हजार अनारक्षित कोटे से सीट पाने के हकदार थे। प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों ने कहा कि हमें 29 हजार ओबीसी वर्ग के लोगों को आरक्षण के दायरे में जोड़ना ही नहीं चाहिए।

ठीक इसी तरह अभ्यर्थियों का यह भी आरोप है कि 69 हजार शिक्षक भर्ती में से एससी वर्ग को भी 21% की जगह मात्र 16।6% आरक्षण मिला। अभ्यर्थियों ने दावा किया कि 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में करीब 19 हजार सीटों का घोटाला हुआ। इसको लेकर वह हाईकोर्ट भी गए और राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग में भी शिकायत की।

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