पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पद की अनुपलब्धता उस आवेदक को नियुक्ति से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है। जिसके साथ राज्य की मनमानी कार्रवाई के कारण अन्याय हुआ है। पंचकूला स्थित हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एच. एस.एस.सी.) की ओर से 2019 में जारी एक विज्ञापन के अनुसार विधिवत चयनित होने के बावजूद याचिकाकर्ता को प्रतीक्षा सूची में रखा गया।
शिक्षा विभाग ने बिना किसी औचित्य के प्रक्रिया में देरी की, जिससे प्रतीक्षा सूची की वैधता अवधि समाप्त हो गई। जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने प्रदेश सरकार की संस्थाओं के इस रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए शिक्षा विभाग पर 50 हजार रुपए जुर्माना लगाया। साथ ही आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को तबला वादक के पद नियुक्त किया जाए।
हाईकोर्ट संजीव कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याची ने हरियाणा सरकार और अन्य याचिकाकर्ता को सभी लाभ के साथ तबला वादक के पद पर नियुक्ति देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता प्रतीक्षा सूची में पहले नंबर पर था। पीठ को बताया गया कि चुने गए उम्मीदवारों में से 2 ने पद ग्रहण नहीं किया था।
इसलिए विभाग को तुरंत बाद उनकी उम्मीदवारी रद्द करनी चाहिए थी, लेकिन यह कार्य 2020 में जारी सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से 8 महीने से अधिक की अवधि के बाद किया गया था। बाद में उम्मीदवारों को दस्तावेज के सत्यापन के लिए बुलाया गया था। याचिकाकर्ता को इस आधार पर नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया कि मुख्य चयन सूची के साथ ही प्रतीक्षा सूची की भी वैधता समाप्त हो चुकी थी।
प्रतीक्षा सूची की वैधता बढ़ाने के बाद भी कोई जठाव नहीं दिया
पोठ को बताया गया कि याचिकाकर्ता ने प्रतीक्षा सूचों की वैधता बढ़ाने के लिए आवेदन किया था। इस आवेदन के बाद वैधता को माह के लिए बढ़ाया तो गया, लेकिन याचिकाकर्ता को कभी भी बुलाया बुलाया नहीं गया। इसके अलावा उनके आवेदन का भी कोई जवाब नहीं दिया।
दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि यह केवल विभागीय सुस्ती के कारण था कि याचिकाकर्ता को समय पर नियुक्ति की पेशकश नहीं की जा सकी। राज्य की उस दलील को भी नकार दिया गया। जिसमें पद उपलब्ध नहीं होने के बारे बताया गया था। पीठ ने पूर्व के कुछ मामलों का जिक्र करते हुए आदेश दिया कि पुरानी तिथि से नियुक्ति देने के साथ ही सभी लाभ भी उपलब्ध करवाएं।