आबकारी नीति से जुड़े एक मामले में टिप्पणी करते हुए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के न्यायाधीश वसीम सादिक नरगल ने कहा कि अदालत किसी प्रशासनिक निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। खासकर जब वो आबकारी नीति से जुड़ा हो। हाईकोर्ट ने जम्मू में शराब की दुकानों की नीलामी रद्द करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
बुधवार को मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में सरकार बोली दस्तावेज या निविदा आमंत्रण नोटिस की शर्तें तय करने के लिए स्वतंत्र है, क्योंकि वे वाणिज्यिक विचारों से प्रेरित होते है, जो न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हैं।
इसलिए बोली दस्तावेज में इस तरह के खंड को सम्मिलित करने के लिए याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई चुनौती निराधार है, क्योंकि यह वाणिज्यिक विचारों पर आधारित है और इस तरह के मामले सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। न्यायालय निर्णय लेने की प्रक्रिया की जांच कर सकता है और यदि पाया जाता है कि इसमें दुर्भावना, अनुचितता और मनमानी की भावना है तो वह इसमें हस्तक्षेप कर सकता है, जो कि वर्तमान मामले में नहीं है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि हस्तक्षेप का मामला बनता भी है तो सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी दी है कि न्यायालयों को हमेशा व्यापक जनहित को ध्यान में रखना चाहिए, ताकि यह तय किया जा सके कि हस्तक्षेप की आवश्यकता है या नहीं। न्यायालय को केवल तभी हस्तक्षेप करना चाहिए,
जब यह निष्कर्ष निकले कि व्यापक जनहित में हस्तक्षेप की आवश्यकता है। निष्कर्ष रूप में रिट याचिकाओं का यह समूह अपना पक्ष रखने में असफल है। लिहाजा याचिका को खारिज किया जाता है।