बॉम्बे हाई कोर्ट ने दस साल तक झोपड़पट्टी पुनर्वास योजना के तहत रीडिवेलपमेंट के संबंध में ठोस कदम न उठाने वाले डिवेलपर को हटाने के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। मामला कांदिवली पश्चिम स्थित स्वपनपूर्ति SRA को-ऑपरेटिव सोसायटी से जुड़ा है। साल 2011 में सोसायटी के रीडिवेलपमेंट के लिए डिवेलपर को नियुक्त किया था, मगर एक दशक तक डिवेलपर ने निर्माण कार्य को लेकर कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए थे। इसे देखते हुए SRA के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने सोसायटी को सदस्यों की ज़रूरी सहमति लेकर खुद की पसंद का नया डिवेलपर नियुक्ति करने की छूट दी थी। आदेश में स्पष्ट किया गया था कि यदि सोसायटी नए डिवेलपर के चयन का निर्णय करती है, तो नए डिवेलपर को पुराने डिवेलपर द्वारा किए गए खर्च की प्रतिपूर्ति करनी होगी।
‘याचिका में आदेश की वैधता पर उठाए सवाल’
सोसायटी को लेकर 1 फरवरी, 2021 के SRA सीईओ और एजीआरसी के 25 जुलाई, 2022 के आदेश को पुराने डिवेलपर ने कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में दोनों आदेश की वैधता पर सवाल उठाए गए थे। याचिका में दावा किया गया था कि उक्त आदेश स्लम ऐक्ट की धारा 13(2) के अनुरूप नहीं है। वहीं, SRA के वकील ने कहा कि सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद अथॉरिटी ने उपरोक्त आदेश जारी किया है। सोसायटी की ओर से ऐडवोकेट सुशील उपाध्याय ने पक्ष रखा। जस्टिस माधव जामदार ने केस के तथ्यों के मद्देनज़र कहा कि सोसायटी सदस्यों का बहुमत नए डिवेलपर की ओर दिखाई दे रहा है। सभी झोपड़पट्टीवासियों ने अपने स्ट्रक्चर खाली कर दिए हैं। उन्हें दो साल का रेंट भी मिल चुका है।
‘नया डिवेलपर समयबद्ध तरीके से कर रहा काम’
जस्टिस जामदार ने कहा कि नया डिवेलपर स्लम प्रोजेक्ट को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए प्रभावी ढंग से कदम उठा रहा है। SRA सीईओ के आदेश में पुराने डिवेलपर के हित का खयाल रखा गया है, जिसके तहत वैल्युअर की रिपोर्ट के आधार पर उसके वास्तविक खर्च की प्रतिपूर्ति का आदेश दिया गया है। जस्टिस जामदार ने साफ किया कि पब्लिक ऑथरिटी द्वारा अधिकारों के दुरुपयोग और दायित्वों की उपेक्षा पर ही विशेषाधिकार (संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत) का प्रयोग किया जा सकता है। अन्याय के खिलाफ ही ऐसे अधिकार इस्तेमाल अपेक्षित है। मौजूदा मामले में हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं दिखाई दे रही है। यह टिप्पणी करते हुए जस्टिस जामदार ने डिवेलपर की याचिका को खारिज कर दिया।