अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का अपराध सिर्फ इस आधार पर दर्ज नहीं किया जा सकता कि पीड़ित पक्ष उस जाति से संबंधित है। जब तक विवाद के दौरान जाति सूचक गाली व अपमानित करने की पुष्टि न हो, तब एट्रोसिटी एक्ट की धाराएं जोड़कर प्रकरण दर्ज नहीं किया जा सकता।  छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की एकलपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में यह आदेश जारी किया है। इस फैसले को एप्रुवल फार आर्डर माना गया है। हाई कोर्ट का यह अहम फैसला एट्रोसिटी एक्ट के प्रकरणों में नजीर के रूप में काम आएगा।


डोंगरगढ़ थाना क्षेत्र का है मामला 


मामला राजनांगांव जिले के डोंगरगढ़ थाना क्षेत्र के ग्राम रूद्रगांव का है। यहां रहने वाले मालिकराम गोंड की निजी जमीन है, जिसे उन्होंने सामुदायिक भवन बनाने के लिए दान में दे दी है। इस जमीन के कब्जा व मालिकाना हक को लेकर मोहल्ले के ही गौतरबाई गोंड व परिवार  से आपसी विवाद चल रहा था। इसे लेकर गांव में बैठक भी हुई थी। इस बैठक में गौतरबाई व परिवार से कोई नहीं पहुंचा। इस बीच दिनांक 9 अक्टूबर 2020 को मालिकराम गोंड अपनी जमीन पर सामुदायिक भवन बनवाने के लिए मजदूरों को लेकर गए । इस दौरान उनके बीच विवाद हो गया। तब गांव के ही हुकुमचंद साहू सहित सात अन्य ने बीच-बचाव कर विवाद शांत कराया। इस दौरान गौतरबाई व परिवार के सदस्यों ने बीच-बचाव करने वालों के साथ ही मारपीट कर दी।


एट्रोसिटी एक्ट की धारा 3(1-10) के तहत पेश कर दिया चालान


इस पर गौतरबाई गोंड ने हुकुमचंद सहित सात अन्य के खिलाफ जान से मारने की धमकी देते हुए मारपीट व बलवा का अपराध दर्ज करा दी। पुलिस ने भी प्राथमिकी रिपोर्ट में धारा 147, 294, 323, 506 के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिया। फिर गौतरबाई व परिवार के सदस्यों के बयान के आधार पर पुलिस ने इस मामले में एट्रोसिटी एक्ट की धारा 3(1-10) के तहत कार्रवाई करते हुए कोर्ट में चालान पेश कर दिया। राजनांदगांव के विशेष कोर्ट एट्रोसिटी सहित बलवा व मारपीट के मामले में आरोप तय कर दिया।


मामले को दी गई चुनौती 


इस पर हुकुमचंद व अन्य ने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर कर दी। इसमें आपराधिक प्रकरण के साथ एट्रोसिटी एक्ट के तहत दर्ज मामले को भी चुनौती दी गई। हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र हाई कोर्ट के आदेश के साथ ही उत्तराखंड के हितेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया गया है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि एट्रोसिटी एक्ट का अपराध सिर्फ आधार पर तय नहीं किया जा सकता कि पीड़ित पक्ष उस वर्ग से आता है। जब तक जाति सूचक गाली देने व अपमानित करने का मामला सामने नहीं आता। 


एट्रोसिटी के आरोप से मुक्त करने का दिया आदेश 


हाई कोर्ट के जस्टिस एनके चंद्रवंशी की एकलपीठ में इस मामले की सुनवाई हुई। उन्होंने माना कि, यह जमीन के टुकड़े व उसके मालिकाना हक को लेकर विवाद है। आदिवासी वर्ग के दो पक्षों में विवाद के दौरान हस्तक्षेप किया गया है। ऐसे में आरोपित पक्ष पर प्राथमिकी रिपोर्ट दर्ज करने के बाद एट्रोसिटी एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज करना गलत है। कोर्ट ने पुनरीक्षण को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आरोपित पक्ष को एट्रोसिटी के आरोप से मुक्त करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने मारपीट, बलवा सहित अन्य मामलों में आरोप तय करने का आदेश दिया है।

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