किसी सड़क दुर्घटना में ऐसे व्यक्ति की कोई गलती साबित होनी चाहिए जिसे जिसके खिलाफ आंशिक लापरवाही का आरोप लगाया गया हो। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कही। न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और वी रामासुब्रमण्यम की पीठ कर्नाटक हाई कोर्ट के निष्कर्षों के खिलाफ एक महिला और उसके नाबालिग बच्चों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उक्त महिला के पति की कार चलाते वक्त लॉरी से टकराकर मौत हो गई थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि मृतक आंशिक लापरवाही का दोषी था।


कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि महिला और उसके नाबालिक बच्चे मुआवजे की निर्धारित राशि के आधे के ही हकदार हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि कुछ असाधारण सावधानी बरतकर टक्कर से बचने में असफल होना अपने आप में लापरवाही नहीं है। पीठ ने हाई कोर्ट के निष्कर्ष को पलटते हुए कहा कि आंशिक लापरवाही को स्थापित करने के लिए, कुछ कार्य या चूक के लिए, जिसने दुर्घटना में भौतिक रूप से योगदान दिया, उस व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए जिसके खिलाफ यह आरोप लगाया गया है।


शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट की ओर से व्यक्त किया गया विचार यह है कि यदि कार का चालक सतर्क होता और यातायात नियमों का पालन करते हुए वाहन को सावधानी से चलाता तो दुर्घटना नहीं होती, यह केवल अनुमान है और किसी सबूत पर आधारित नहीं है। 10 फरवरी, 2011 को याचिकाकर्ता महिला के पति की कार एक लॉरी से तब सामने से टकरा गई थी जब उसके चालक ने किसी संकेत के बिना वाहन अचानक ही रोक दिया था। इस हादसे में कार चला रहे व्यक्ति को गंभीर चोटें लगीं थीं और उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई थी।


याचिकाकर्ताओं ने ट्रक चालक की लापरवाही के कारण यह दुर्घटना होने का दावा करते हुए मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में 54 लाख 10 हजार रुपये के मुआवजे का दावा किया था। पीठ ने छह अक्तूबर के अपने आदेश में कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था कि कार का चालक सामान्य गति से गाड़ी नहीं चला रहा था या उसने यातायात नियमों का पालन नहीं किया था। इसके उलट, हाई कोर्ट का मानना है कि यदि ट्रक राजमार्ग पर खड़ा नहीं होता तो कार की गति तेज होने पर भी कोई दुर्घटना नहीं होती।

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