उच्चतम न्यायालय ने भ्रामक विज्ञापन मामले में पंतजलि आयुर्वेद के बचाव पर मंगलवार को अप्रसन्नता जतायी तथा योगगुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण की माफी को ‘कोरी बयानबाजी’ कहकर खारिज कर दिया। न्यायालय ने साथ ही शपथ भंग पर उन्हें आगाह किया।

न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने उत्पादों की प्रभावकारिता के बारे में पतंजलि के बड़े-बड़े दावों और कोविड महामारी के चरम दौर में एलोपैथी को बदनाम करने पर केंद्र की कथित निष्क्रियता पर भी सवाल उठाया और पूछा कि सरकार ने क्यों अपनी “आंखें मूंदे” रखीं?

स्वामी रामदेव और बालकृष्ण दोनों कारण बताओ नोटिस के सिलसिले में अदालत में उपस्थित थे। कारण बताओ नोटिस में पूछा गया था कि उनके खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए? पीठ में न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह भी शामिल थे। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल के लिए तय करते हुए कहा कि उस दिन योगगुरु रामदेव और बालकृष्ण दोनों को फिर से पेश होना होगा।

पीठ ने उन्हें हलफनामा दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का आखिरी मौका देते हुए, उस शपथ की “पूर्ण अवज्ञा” करने पर कड़ी आपत्ति जतायी जो दोनों ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर मामले में उसके सामने दाखिल की थी।

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