हाईकोर्ट ने मोहाली निवासी 15 साल की दुष्कर्म पीड़िता के गर्भ को गिराने की अनुमति देते हुए कहा कि गर्भ उसके जख्मी शरीर और आत्मा का प्रमाण है। हाईकोर्ट ने मोहाली के अस्पताल में पीड़िता का गर्भपात करने की अनुमति दी है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि पीड़िता आज भी नाबालिग है और अपने परिवार पर निर्भर है। उसे अभी अपनी शिक्षा पूरी करनी है और जीवन में अपने लक्ष्य हासिल करने हैं। इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि गर्भावस्था नाबालिग के जख्मी शरीर और आत्मा का प्रमाण है। यदि बच्चा पैदा होता है, तो वह अच्छी यादों को नहीं बल्कि उस आघात और पीड़ा की याद दिलाएगा, जिससे पीड़िता को गुजरना पड़ा।
मां को तानों से भरा यातनापूर्ण जीवन जीना होगा
हाईकोर्ट ने कहा कि एक अनचाहे बच्चे के रूप में मां को तानों से भरा यातनापूर्ण जीवन जीना होगा। ऐसे में किसी भी स्थिति में मां और बच्चे को जीवन भर सामाजिक कलंक भुगतना पड़ेगा। यह किसी भी मां के सर्वोत्तम हित में नहीं है। ऐसे निर्णय कठिन होते हैं, जीवन केवल सांस लेने में सक्षम होने के बारे में नहीं है, बल्कि यह सम्मान के साथ जीने में सक्षम होने के बारे में है। इस प्रकार विकल्प कम हो जाते हैं और गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देना अधिक विवेकपूर्ण लगता है। इन टिप्पणियों के साथ ही हाईकोर्ट ने 15 साल की पीड़िता का गर्भ समाप्त करने की अनुमति दे दी है।
मेडिकल बोर्ड ने की थी गर्भपात की सिफारिश
याचिका दाखिल करते हुए मोहाली निवासी महिला ने बताया था कि उसकी बेटी का अपहरण कर लिया गया था। इसके बाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई और कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पीड़िता को आरोपी के कब्जे से सिरसा से रिहा कराया था।
इसके बाद मेडिकल में दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी। बाद में पता चला कि पीड़िता गर्भवती है और गर्भ की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है। ऐसे में गर्भपात के लिए हाईकोर्ट की अनुमति जरूरी है। हाईकोर्ट के आदेश पर मोहाली में मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था और बोर्ड ने गर्भपात की सिफारिश की थी।