दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग के अपहरण व बलात्कार के आरोप से एक युवक को अपराधमुक्त करते हुए टिप्पणी की कि कानून को सिर्फ गणित के तराजू पर नहीं तोला जा सकता। कोर्ट ने कहा जब तराजू के दूसरे पलड़े पर खुशियां, जीवन व बच्चों के भविष्य होता है तो दूसरा पलड़ा कानून पर भारी पड़ता है।

जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा की बेंच ने इस मामले में आरोपी की तरफ से दाखिल एफआईआर रद्द करने की अपील को स्वीकार कर लिया है। बेंच ने कहा कि पूरा मामला देखने के बाद पता चलता है कि यह मामला प्रेम संबंधों की मजबूती का है। जहां एक नाबालिग लड़की प्रेम विवाह करती है और गर्भवती हो जाती है। लड़का बालिग था। लड़की के घर वालों ने लड़के के खिलाफ नाबालिग के अपहरण व बलात्कार का मुकदमा दर्ज करा दिया। जिस समय लड़की को पुलिस ने बरामद किया, वह पांच महीने की गर्भवती थी। लड़का दो साल दस महीने तक जेल में रहा। लड़की ने उसका इंतजार किया। यहां तक की अदालत में माना कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है।

खुशियां नहीं छीन सकते

बेंच ने कहा कि प्रतीक के तौर पर कानून के दो तराजू होते हैं। यह भी सही है कि कानून के तराजू में नियम व कायदे का पालन अनिवार्य है। लड़की नाबालिग थी, इसलिए यह एक अपराध है, लेकिन जहां सवाल किसी की खुशी व बच्चों के भविष्य का है तो वहां कानून का गणित तराजू के दूसरे पलड़े पर भारी पड़ता है। इसलिए कानून की आड़ में खुशियां नहीं छिनी जा सकती हैं।

दोनों का एक ही समुदाय से ताल्लुक

युवक के खिलाफ किशोरी के परिवार ने फरवरी 2015 में फतेहपुरी थाने में अपनी नाबालिग बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था। 17 जून 2015 को पुलिस ने लड़की को बरामद कर लिया, जबकि लड़के को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लड़की ने अदालत को दिए बयान में बताया कि एक ही समुदाय से ताल्लुक रखने वाले आरोपी व उसने शादी कर ली है और वह पांच महीने की गर्भवती है। अब वह दो बच्चों के माता-पिता हैं।

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