सुप्रीम कोर्ट ने शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को बड़ी राहत देते हुए पंजाब सरकार की उस अपील अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। इससे पहले पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने एक लोक सेवक द्वारा पारित आदेशों का उल्लंघन करने और महामारी रोग अधिनियम के तहत अपराध करने के आरोप में बादल के खिलाफ FIR को रद्द करने का फैसला सुनाया था। इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। कोर्ट ने अर्जी खारिज करते हुए टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि नेता के खिलाफ आपराधिक मामला “राजनीतिक साजिश” है।जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने अगस्त 2023 के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने पर पंजाब सरकार से ही सवाल किया, और इस बात पर जोर दिया कि बादल के खिलाफ आपराधिक मुकदमा शुरू करने का कोई मामला नहीं बनता दिख रहा है।पीठ ने राज्य सरकार की वकील रूह-ए-हिना दुआ से पूछा, “इस मामले में दर्ज की गई FIR के तत्व कहां हैं? और यह मामला एक निजी खनन कंपनी की शिकायत के आधार पर शुरू किया गया था तो राज्य सरकार अपील में क्यों आई है? क्या यह सब राजनीतिक साजिश है?”इसके जवाब में दुआ ने कहा कि यह मुद्दा कि क्या आरोपों के आधार पर अपराध बनाए गए थे, मुकदमे का विषय था लेकिन हाई कोर्ट ने बादल के खिलाफ FIR को रद्द करते हुए खुद ही मिनी ट्रायल कर दिया। हालाँकि, अदालत इससे प्रभावित नहीं हुई और कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जहाँ राज्य सरकार को अपील करनी चाहिए थी।पीठ ने कहा, “FUIR के अनुभागों को देखिए। आईपीसी की धारा 270 (घातक कृत्य जो जीवन के लिए खतरनाक बीमारियों के फैलने का कारण बन सकते हैं) को दिखाने के लिए सबूत कहां हैं? या (धारा) 341 (गलत तरीके से रोकना)के सबूत कहां हैं? स्पष्ट रूप से, ऐसा कोई अपराध नहीं बनता है।”पीठ ने अपने आदेश में लिखा कि हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई मामला नहीं बनता है, इसलिए, राज्य सरकार की अपील खारिज की जाती है।बता दें कि खनन कंपनी द्वारा जून 2021 की FIR में आरोप लगाया गया था कि बादल और अकाली दल के अन्य सदस्यों ने उनके कर्मचारियों को धमकाया और अमृतसर जिले के वजीर भुल्लर गांव में उनके कानूनी खनन कार्यों और गाद निकालने वाली साइटों में बाधा डाली और काम में हस्तक्षेप किया। इसमें कहा गया है कि बादल और उनके समर्थकों ने मास्क नहीं पहना था, जबकि कोविड का प्रकोप था, जिससे महामारी रोग अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन हो रहा है।उच्च न्यायालय के समक्ष एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए, बादल ने दलील दी थी कि एफआईआर राजनीति से प्रेरित है और भले ही सभी आरोपों को उनके अंकित मूल्य पर लिया गया था, अभियोजन शुरू करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है और राज्य उन पर छिपे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मुकदमा चलाना चाहता है।बादल की अर्जी पर हाई कोर्ट ने अगस्त 2023 में FIR को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उसमें उल्लिखित किसी भी अपराध की पुष्टि करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा था, “एक लोकतांत्रिक देश में, यदि कोई स्थापित राजनीतिक व्यक्ति, किसी सार्वजनिक मुद्दे के बारे में गंभीर शिकायतें सुनने पर, मौके पर जाकर उसे सत्यापित करने का निर्णय लेता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसका इरादा महामारी रोग अधिनियम, 1897 या आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2006 की धारा 3 के तहत किसी भी सरकार द्वारा जारी किए गए किसी भी घोषणा का उल्लंघन करना है।”