पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा है कि पत्रकारिता सभ्यता का एक दर्पण और खोजी पत्रकारिता इसका ‘एक्स-रे’ है। उच्च न्यायालय ने यहां कुछ पत्रकारों के खिलाफ 2008 के मानहानि मामले में समन और इसके बाद की सभी कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा की पीठ ने चार जनवरी के अपने आदेश में कहा कि पत्रकार सत्ता की स्वतंत्र रूप से निगरानी के रूप में काम करते हैं और जनता की भलाई तथा सुरक्षा के संबंध में जानकारी देते हैं। पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘पत्रकारिता सभ्यता का एक दर्पण है और खोजी पत्रकारिता उसका एक्स-रे है।”

यह मामला 2008 में आईपीएस अधिकारी (अब सेवानिवृत्त) पी वी राठी द्वारा एक दैनिक अखबार के चंडीगढ़ के तत्कालीन संपादक विपिन पब्बी सहित वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे से जुड़ा है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘पत्रकारिता किसी भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। एक पत्रकार के रूप में, पत्रकार का महत्वपूर्ण कर्तव्य नागरिकों के प्रति निष्ठा है। पत्रकार सत्ता की स्वतंत्र रूप से निगरानी के रूप में काम करते हैं और जनता की भलाई तथा सुरक्षा के संबंध में जानकारी देते हैं।”

न्यायमूर्ति चितकारा ने पब्बी और तीन अन्य पत्रकारों द्वारा दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए अपने आदेश में उल्लेख किया कि वास्तविक घटनाओं की ईमानदारी से और सही रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिए, ऐसे पत्रकारों को अदालतों, विशेष रूप से संवैधानिक अदालतों की सुरक्षा की आवश्यकता होती है ताकि वे बिना किसी भय के समाचार प्रकाशित कर सकें।

उनके खिलाफ 2008 में मानहानि से संबंधित आईपीसी की धाराओं के तहत शिकायत दर्ज की गई थी। पब्बी और एक अन्य याचिकाकर्ता उस संगठन से सेवानिवृत्त हो चुके हैं जिसमें वे तब कार्यरत थे।

पत्रकारों ने समन को रद्द करने और गुरुग्राम सत्र न्यायालय द्वारा आपराधिक पुनरीक्षण को खारिज करने का अनुरोध करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था।

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