खतौली के टिटौड़ा गांव से अनुसूचित जाति का मजदूर राजेंद्र कुमार अपने बेटे अतुल कुमार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पहुंचा था। जैसे ही सुप्रीम अदालत के फैसले की जानकारी मिली, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
छात्र ने कहा कि पलभर में सारे संघर्ष की थकान खत्म हो गई। मेरा सपना अब पूरा हो सकेगा। राजेंद्र सिंह कहते हैं कि हमे सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद थी और इंसाफ मिल गया। अब जल्द ही प्रवेश की प्रक्रिया पूरी करा दी जाएगी।
क्या था मामला
खतौली क्षेत्र के टिटौड़ा गांव निवासी अनुसुचित जाति के मजदूर राजेंद्र कुमार के बेटे अतुल की जेईई की परीक्षा में 1455वी रैंक आई थी। इसके आधार पर आईआईटी धनबाद में प्रवेश लेना था। छात्र का सपना था कि वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से पढ़ाई करें, लेकिन यह सपना अभी अधूरा है। असल में 24 जून की शाम पांच बजे तक शुल्क जमा करना था, लेकिन परिवार 17500 रुपये नहीं जुटा सका था। वेबसाइट बंद हो गई और प्रवेश नहीं मिल था।
यह हो गई थी परेशानी
छात्र के पिता राजेंद्र बताते हैं कि गांव के ही एक व्यक्ति ने रुपये देने की बात कही थी, लेकिन ऐन वक्त पर रुपये नहीं दिए। शुल्क का इंतजाम करने में करीब पौने पांच बजे गए। जब तक वेबसाइट पर डाटा अपलोड करते, तब तक समय समाप्त हो गया। छात्र ने पहले एससी एसटी आयोग में प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन सीट पर कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद छात्र पहले हाईकोर्ट झारखंड और फिर हाईकोर्ट मद्रास पहुंचे। मद्रास के बाद प्रकरण सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। दूसरी सुनवाई सोमवार को हुई।
मजदूर के परिवार में तीसरा आईआईटियन
टिटौड़ा गांव निवासी राजेंद्र के दो बेटे पहले ही आईआईटी की पढ़ाई कर रहे हैं। एक बेटा मोहित कुमार हमीरपुर और दूसरा बेटा रोहित खड़कपुर से आईआईटी कर रहा है। तीसरे बेटे अतुल ने कानपुर में टेस्ट दिया था। रैंक के हिसाब से उसे आईआईटी धनबाद का आवंटन हुआ था, लेकिन समय पर फीस जमा नहीं हो सकी थी। चौथा बेटा अमित खतौली में पढ़ाई कर रहा है, जबकि माता राजेश देवी गृहणी है। राजेंद्र कुमार सिलाई का कार्य भी करते हैं।
आईआईटी में प्रवेश दें, हम ऐसे प्रतिभाशाली लड़के को जाने नहीं दे सकते : सुप्रीम कोर्ट
आपको बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के दलित बिरादरी के एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे को आईआईटी में प्रवेश का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, हम इस युवा प्रतिभाशाली लड़के को ऐसे ही जाने नहीं दे सकते। अतुल कुमार नामक यह छात्र 17500 रुपए की ऑनलाइन फीस के भुगतान में कुछ मिनट से चूक गया था।
शीर्ष कोर्ट ने उसे प्रवेश दिलाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया। देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को आईआईटी, धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम सीट पर प्रवेश दिया जाए, जो उसे आवंटित की गई थी। कोर्ट ने कहा कि उसे समायोजित करने के लिए एक अतिरिक्त सीट बनाई जाए ताकि किसी अन्य छात्र के प्रवेश में बाधा न आए।
गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवार से आने वाला अतुल कुमार ने 24 जून को शाम 4:45 बजे तक ग्रामीणों से 17500 रुपए की राशि एकत्र की लेकिन शाम पांच बजे की समयसीमा से पहले ऑनलाइन भुगतान नहीं कर पाया था। आईआईटी सीट आवंटन प्राधिकरण की ओर से पेश वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि लॉगइन विवरण से पता चलता है कि उसने दोपहर 3 बजे लॉगइन किया था, जिसका मतलब है कि यह अंतिम समय में किया गया लॉगइन नहीं था।
प्राधिकरण के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को मॉक इंटरव्यू की तिथि पर भुगतान करने की अनिवार्यता के बारे में भी बताया गया था, जो कि अंतिम तिथि से बहुत पहले था। उन्होंने कहा कि उन्हें एसएमएस और व्हाट्सएप के माध्यम से बार-बार रिमांइडर भेजे गए। हालांकि, इस दलील से पीठ संतुष्ट नहीं हुई।
अगर साधन होते तो समय पर राशि क्यों नहीं चुकाता
जस्टिस पारदीवाला ने प्राधिकरण के वकील से कहा, आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? आपको देखना चाहिए कि क्या कुछ किया जा सकता है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उनके पिता 450 रुपये की दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं और 17500 रुपए की राशि की व्यवस्था करना उनके लिए एक बड़ा काम था। उन्होंने ग्रामीणों से राशि जुटाई। पीठ ने आदेश में कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि याचिकाकर्ता के पास अगर 17500 रुपए की राशि का भुगतान करने के साधन होते तो वह यह राशि क्यों नहीं चुकाता।
सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना होगा
सीजेआई ने कहा, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तौर पर हमें यह देखना होगा कि जो चीज उसे रोका, वह थी भुगतान करने में असमर्थता। कोर्ट को उसकी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखना होगा। शीर्ष अदालत ने कहा, हमारा मानना है कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय को ऐसी स्थितियों में पूर्ण न्याय करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 17500 रुपए की राशि व्यक्तिगत तौर पर अदा करेगा। उसे उसी बैच में रखा जाए जिसमें उसे प्रवेश दिया जाना था और उसे छात्रावास जैसे सभी परिणामी लाभ दिए जाने चाहिए।
सीजेआई ने छात्र को दी शुभकामनाएं
सीजेआई ने याचिकाकर्ता छात्र को बधाई देते हुए कहा,शुभकामनाएं, अच्छा करिए। छात्र के वकील ने पीठ को बताया कि कई वरिष्ठ वकीलों ने उनकी फीस प्रायोजित करने की पेशकश की है। याचिकाकर्ता ने आखिरी प्रयास में जेईई एडवांस में सफलता प्राप्त की थी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले उसने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, झारखंड कानूनी सेवा प्राधिकरण के साथ-साथ मद्रास हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था।