जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनुअल मिशन (JnNURM) योजना 2005 में शुरू की गई थी। इसके तहत दिल्ली में में निर्मित 9 हजार से ज्यादा फ्लैटों की मरम्मत और रेनोवेशन का काम फंड के इंतजार में रुका पड़ा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड(DUSIB) को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। उसमें यह बताने का निर्देश दिया है कि उसे इस काम को पूरा करने के लिए कितने फंड की जरूरत है और कितना पैसा दिल्ली सरकार द्वारा रिलीज किया गया।
चीफ जस्टिस(मनोनीत) मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने 27 सितंबर को यह आदेश तब पारित किया, जब DUSIB ने उसे बताया कि फ्लैटों की मरम्मत और रेनोवेशन से जुड़े कामों के लिए दिल्ली सरकार की ओर से फंड रिलीज किया जाना बाकी है। सुनवाई स्थगित करने का कोर्ट से अनुरोध करते हुए बोर्ड ने उम्मीद जताई कि उसे 29 अक्टूबर को अगली सुनवाई से पहले यह पैसा मिल जाना चाहिए। इसके बाद कोर्ट ने आदेश पारित कर दो हफ्ते में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
मौजूदा मामला JnNURM के तहत दिल्ली में बने खाली पड़े फ्लैटों के इस्तेमाल से जुड़ा है। हाई कोर्ट ने पाया कि DUSIB ने 9,104 फ्लैट आवंटित करने का कमिटमेंट किया था। फिर, भी उन फ्लैटों को लेने के लिए कोई आगे नहीं आया, क्योंकि वहां बिजली, पानी, सीवेज जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं थीं। शहरी गरीबों के लिए फ्लैटों को बनाने में क्यों देरी हुई और क्यों इस योजना के तहत निर्मित 9 हजार से अधिक फ्लैट आज तक खाली पड़े रहे। हाई कोर्ट ने DUSIB को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि वह 18 सितंबर, 2023 के आदेश के मुताबिक इन फ्लैटों को रहने के लिए जल्द से जल्द दुरुस्त करे। उसी निर्देश के अनुपालन में मौजूदा स्थिति कोर्ट के सामने रखी गई। जिससे जाहिर है कि इस बार काम में देरी दिल्ली सरकार की ओर से फंड रिलीज करने में देरी के चलते हो रही है।
DUSIB के वकील ने सुनवाई इस आधार पर शांति से स्थगित करवा ली कि पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल में होने की वजह से ऐसे कई काम लटके पड़े थे। अब आतिशी के मुख्यमंत्री बनने के बाद लटके कामों में तेजी आने की उम्मीद है।
क्या है योजना और कब से लटकी है
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने 18 सितंबर, 2023 के आदेश में भी माना था कि भारत सरकार ने 2005 में इस योजना की शुरुआत शहरी गरीबों के लिए शहरी बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, उन तक नागरिक सुविधाओं को पहुंचाने और शासन में जवाबदेही शुरू करने के मकसद से की थी, लेकिन समय के साथ मिशन का महत्व कमजोर पड़ गया। मसलन, केंद्र सरकार ने अनुमानित 2,415.82 करोड़ रुपये की लागत से 52,344 घरों के निर्माण से जुड़े प्रोजेक्ट को मंजूरी देते हुए इसके लिए 31 मार्च, 2017 तक 1,074.12 करोड़ रुपये जमा भी करा दिए। बावजूद इसके काफी बड़ी संख्या में मकान बने नहीं या आवंटित नहीं किए गए।
हाई कोर्ट ने गौर किया कि केंद्र और दिल्ली के बीच प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2020 में लागू अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स स्कीम को लेकर आम सहमति न बन पाना और आवंटन के लिए एक संक्षिप्त नीति तैयार करने में विफलता की वजह से 9,104 फ्लैटों का इस्तेमाल नहीं हो सका, जिनका निर्माण पहले ही हो चुका है।