सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि मुंबई और नवी मुंबई जैसे शहरों में बाकी बची हरियाली को संरक्षित करने की जरूरत है। यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को लेकर की है, जिसे शहर और औद्योगिक विकास निगम (सिडको) और नवी मुंबई द्वारा दायर किया गया था।
दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसके तहत नवी मुंबई के स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स को 115 किलोमीटर दूर रायगढ़ जिले में स्थानांतरित कर दिया गया था। जो साल 2003 नवी मुंबई में 20 एकड़ जमीन खेल परिसर के लिए आवंटित की गई थी। साल 2016 में नवी मुंबई के योजना प्राधिकरण सिडको ने इस खेल परिसर के एक हिस्से को एक निजी डेवलेपर को आवंटित कर दिया, जिस पर रिहायशी और व्यवसायिक निर्माण किया जाना था।
115 किमी दूर स्थानांतरित किया खेल परिसर को
सरकार ने खेल परिसर की जगह को नवी मुंबई से 115 किलोमीटर दूर रायगढ़ जिले के मनगांव में स्थानांतरित करने का फैसला किया। इसके खिलाफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स, नवी मुंबई केंद्र ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी। शीर्ष अदालत ने इस मामले की संक्षिप्त सुनवाई के दौरान कहा, यह एक बहुत ही प्रचलित प्रथा है। सरकार जो भी हरित क्षेत्र बचा है, उसे अतिक्रमण कर बिल्डरों को दे देती है।
सीजेआई ने कहा कि, मुंबई और नवी मुंबई जैसे शहरों में बहुत कम हरियाली बची है। इन शहरों में ऊर्ध्वाधर विकास हुआ है। आपको ऐसी हरित जगहों को संरक्षित करना होगा और बिल्डरों को निर्माण के लिए नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ को यह जानकर भी आश्चर्य हुआ कि राज्य स्तरीय खेल परिसर के लिए दी गई जमीन को कुछ विकास के लिए दिया और प्रस्तावित सुविधाओं को रायगढ़ जिले में स्थानांतरित कर दिया गया।
पीठ ने सरकार के फैसले पर कंसा तंज
सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि, खेल परिसर की सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए 115 किलोमीटर की यात्रा कौन करेगा? कुछ वर्षों बाद उस जमीन का भी यही हश्र होगा। पीठ ने तंज कसते हुए पूछा कि ऐसी स्थिति में स्वर्ण पदक विजेता कैसे उभरेंगे? सिडको की ओर से कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि, वह नगर नियोजन गतिविधियां चलाना चाहता है, जो राज्य के अधिकार क्षेत्र में आती हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, खेल परिसर के निर्माण के लिए बीस एकड़ जमीन पर्याप्त नहीं थी। इसके बदले में राज्य ने वैकल्पिक स्थल के तौर पर उस जमीन को निर्धारित किया था। उन्होंने कहा कि यह मामला शहरों के हरित फेफड़ों से संबंधित नहीं है, बल्कि यह नगर नियोजन गतिविधियों से संबंधित है। पीठ ने अब याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख तय की है।