सुप्रीम कोर्ट ने निजी कंपनी जीएमआर एयरपोर्ट्स को नागपुर के बाबासाहेब आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का रिनोवेशन  र संचालन करने की अनुमति देने के अपने फैसले के खिलाफ केन्द्र और भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण की सुधारात्मक याचिका का शुक्रवार को निपटारा कर दिया।

शीर्ष अदालत ने यह निर्णय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की स्वतंत्र पेशेवर राय पर गौर करने के बाद लिया। सॉलिसिटर जनरल की ओर से कहा गया था कि केंद्र और एएआई की सुधारात्मक याचिकाएं ऐसी याचिकाओं पर विचार करने के लिए निर्धारित कानूनी मापदंडों के अंतर्गत नहीं आतीं।

सुधारात्मक याचिका यानी क्यूरेटिव पिटीशन, वादी के लिए उपलब्ध अंतिम कानूनी सहारा है और इसका विकल्प शीर्ष अदालत की ओर से 2002 में रूपा अशोक हुर्रा मामले में दिए गए फैसले के तहत तैयार किया था। ऐसी याचिका, मुख्य मामले और समीक्षा याचिका के खारिज होने के बाद, कुछ कानूनों का उल्लंघन होने पर दायर की जा सकती है। इस सुविधा के उपयोग के लिए किसी मामले में दिए गए फैसले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होना चाहिए, पक्षपात की आशंका होनी चाहिए और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होना चाहिए।

शुक्रवार को शीर्ष विधि अधिकारी ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की चार न्यायाधीशों की विशेष पीठ से कहा कि केंद्र और एएआई की सुधारात्मक याचिकाएं 2002 के फैसले के तहत नहीं आती हैं। वे वे पक्षपात का तर्क देकर नहीं कह सकते कि सरकार का पक्ष नहीं सुना गया।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “इन कार्यवाहियों को अंतर-न्यायालय अपील में नहीं बदला जा सकता। मुझे अपना निर्णय स्वीकार करना होगा…मैंने केंद्र से भी परामर्श नहीं किया है।” हालांकि, विधि अधिकारी ने एक पहलू प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया था कि केंद्र और एएआई मुकदमे में आवश्यक पक्ष नहीं थे, तथा इस पर पुनर्विचार किया जा सकता है, क्योंकि इसी प्रकार के मामलों में इसके नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल के विचारों की सराहना की और कहा कि सुधारात्मक याचिका को “बिना दबाव के” निपटाया जाता है। विधि अधिकारी के इस कथन को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, “निर्णय में यह कहा गया है कि एएआई और भारत संघ आवश्यक पक्ष नहीं हैं, जो कानून की दृष्टि से सही स्थिति नहीं होगी।” इससे पहले, पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में, न कि मामले में केंद्र और एएआई के वकील के रूप में, “निष्पक्ष विचार” मांगे थे।

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