कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) के जज जस्टिस वी श्रीशानंद ने बेंगलुरु के एक हिस्से को मिनी पाकिस्तान बताने सहित अपनी विवादित टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांग ली है. सुप्रीम कोर्ट में दायर माफीनामे में जस्टिस श्रीशानंद ने कहा है, “मेरे बयान को गलत संदर्भ में पेश किया गया. मेरा इरादा किसी की भावनाओं को आहत करने का नहीं था.”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें यह देखना होगा कि जस्टिस श्रीशानंद ने खुली अदालती कार्यवाही में माफी मांगी है. न्यायपलिका के हित में यह जरूरी है कि हम उनके माफीनामे को स्वीकार करते हुए इस मामले में आगे कोई कार्रवाई ना करें. इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उनका माफीनामा स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई बंद कर दी है
कर्नाटक हाईकोर्ट के जज जस्टिस श्रीशानंद की विवादित टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी थी.
स्वत: संज्ञान पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा, “आज के जमाने में सोशल मीडिया की व्यापकता और पहुंच में अदालती कार्यवाही की व्यापक रिपोर्टिंग भी शामिल है. देश के ज्यादातर उच्च न्यायालयों ने अब लाइव स्ट्रीमिंग या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालतों के संचालन का नियम अपना लिया है. ये सब कोरोना महामारी के दौरान बुनियादी जरूरत के तौर पर सामने आया. यह अदालतों के लिए भी सरल, सुलभ और सुनिश्चित न्याय तक पहुंच प्रदान करने के लिए अहम आउटरीच सुविधा बन गई.”
‘इस तथ्य से सचेत रहें…’
चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि न्यायाधीश, वकील वादी सभी को यह जरूर पता होना चाहिए कि कार्यवाही उन दर्शकों तक भी पहुंचती है, जो कोर्ट के भौतिक परिसर से बहुत दूर हैं. इस तरह सभी को बड़े पैमाने पर समुदायों पर टिप्पणियों के बड़े प्रभाव के बारे में पता होना चाहिए. जजों के रूप में हम इस तथ्य के प्रति सचेत हैं कि हर व्यक्ति के पास जिंदगी के शुरुआती या बाद के अनुभवों के आधार पर पूर्वाग्रहों का एक सेट होता है.”
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि न्यायाधीश अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों और मन, हृदय और आत्मा के बारे में जागरूक हों. एक जज का मन, हृदय और आत्मा तब जागृत रहते हैं, जब वे निष्पक्ष होते हैं. तभी हम ऑब्जेक्टिव और असली इंसाफ दे सकते हैं. सभी हितधारकों के लिए यह समझना अहम है कि केवल वे मूल्य जो न्यायिक फैसला लेने का मार्गदर्शन करते हैं, वे संविधान में हैं.