उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक उच्च न्यायालय की तरफ से मेक-अप की वस्तुओं और विधवा के बारे में की गई टिप्पणी को अत्यधिक आपत्तिजनक करार देते हुए कहा कि ऐसी टिप्पणी कानून की अदालत से अपेक्षित संवेदनशीलता और तटस्थता के अनुरूप नहीं है।

हाईकोर्ट ने सात लोगों को सुनाई थी सजा
उच्च न्यायालय ने मामले में पांच व्यक्तियों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था और दो अन्य सह-आरोपियों को बरी करने के फैसले को खारिज कर दिया था। न्यायालय ने दो व्यक्तियों को दोषी ठहराया था, जिन्हें पहले एक निचली अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस प्रश्न की जांच की थी कि क्या पीड़िता वास्तव में उस घर में रह रही थी, जहां से उसका कथित तौर पर अपहरण किया गया था।

सिर्फ गवाही के आधार पर हाईकोर्ट ने निकाला निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि मृतक के मामा और बहनोई और जांच अधिकारी (आईओ) की गवाही पर भरोसा करते हुए उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला था कि पीड़िता उक्त घर में रह रही थी। पीठ ने कहा कि आईओ ने घर का निरीक्षण किया था और कुछ श्रृंगार सामग्री को छोड़कर कोई प्रत्यक्ष सामग्री एकत्र नहीं की जा सकी, जिससे यह संकेत मिले कि पीड़िता वास्तव में वहां रह रही थी। इसने कहा कि निश्चित रूप से, एक अन्य महिला, जो विधवा थी, भी घर के उसी हिस्से में रह रही थी।

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान दिया, लेकिन यह टिप्पणी करके इसे टाल दिया कि चूंकि दूसरी महिला विधवा थी, श्रृंगार सामग्री उसकी नहीं हो सकती थी, क्योंकि विधवा होने के कारण उसे श्रृंगार करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

हाईकोर्ट का अवलोकन अत्यधिक आपत्तिजनक- SC
पीठ ने अपने फैसले में कहा, हमारे विचार में, उच्च न्यायालय का अवलोकन न केवल कानूनी रूप से अस्वीकार्य है, बल्कि अत्यधिक आपत्तिजनक भी है। इस तरह का व्यापक अवलोकन कानून की अदालत से अपेक्षित संवेदनशीलता और तटस्थता के अनुरूप नहीं है, खासकर तब, जब रिकॉर्ड पर किसी साक्ष्य से ऐसा साबित न हो। पीठ ने कहा कि केवल कुछ मेकअप वस्तुओं की मौजूदगी इस तथ्य का निर्णायक सबूत नहीं हो सकती कि मृतक घर में रह रही थी, खासकर तब, जब वहां एक और महिला भी रहती थी।

घर में नहीं मिला था महिला का कोई निजी सामान
पीठ ने कहा, मेकअप वस्तुओं को पूरी तरह से अस्वीकार्य तर्क के आधार पर मृतक से जोड़ा गया था और कोई पुष्टि करने वाली सामग्री नहीं थी। पीठ ने कहा कि पूरे घर में मृतक के कपड़े और जूते जैसे कोई भी निजी सामान नहीं पाए गए। पीठ ने कहा कि पीड़िता की अगस्त 1985 में मुंगेर जिले में मृत्यु हो गई थी और उसके देवर ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसे सात लोगों ने उनके घर से अगवा कर लिया था। पीठ ने कहा कि एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और बाद में सात आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था।

निचली अदालत ने हत्या समेत अन्य अपराधों के लिए पांच आरोपियों को दोषी ठहराया था, जबकि अन्य दो को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था। अपने फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपियों की तरफ से हत्या किए जाने को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है।

शीर्ष अदालत ने सातों आरोपियों को किया बरी
पीठ ने कहा कि, जहां तक मकसद का सवाल है, हम यह कहने के लिए पर्याप्त हो सकते हैं कि मकसद तभी काम आता है जब रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत विचाराधीन अपराधों के तत्वों को साबित करने के लिए पर्याप्त हों। आधारभूत तथ्यों के सबूत के बिना, अभियोजन पक्ष का मामला केवल मकसद की मौजूदगी पर सफल नहीं हो सकता है। शीर्ष अदालत ने सातों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया और निर्देश दिया कि अगर वे हिरासत में हैं तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाए।

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