डूसू चुनाव प्रचार के दौरान नियमों को ताक पर रखते हुए सार्वजनिक संपत्ति को गंदा करने वाले छात्र नेता उम्मीदवारों के खिलाफ डीयू की कार्रवाई पर दिल्ली हाई कोर्ट की नजर है। यूनिवर्सिटी ने बुधवार को कोर्ट में दावा किया कि उसने 14 उम्मीदवारों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और गुरुवार तक संबंधित अधिकारी इस मुद्दे पर फैसला लेने वाले हैं। हाई कोर्ट ने तब तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी, पर डूसू चुनावों में पैसों की बर्बादी और शक्ति प्रदर्शन के तरीके पर अपनी नाराजगी भी व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि चुनाव लोकतंत्र का पर्व हैं, धन की हेरा फेरी का नहीं। कोर्ट सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, गंदा करने या नष्ट करने में शामिल डूसू उम्मीदवारों और छात्र राजनीतिक संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली मनचंदा की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने लगाई फटकार

मनोनीत चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने कड़े शब्दों में स्थिति की निंदा की। बेंच ने कहा, प्रथम दृष्टया उम्मीदवारों द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यूनिवर्सिटी के वीसी को दखल देना चाहिए और कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा, लोग पढ़ाई करने की जगह पर अनपढ़ों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। चुनाव प्रणाली युवाओं को भ्रष्ट करने के लिए नहीं है, जैसा कि यहां होता दिखाई दे रहा है। यह युवाओं का करप्शन है।

‘यह स्थिति आम चुनावों से भी बदतर’

सार्वजनिक संपत्ति को गंदा करने की तस्वीरों को देखते हुए, बेंच ने कहा कि यह स्थिति आम चुनावों से भी बदतर है। कोर्ट ने डीयू से मामले में कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा जताई। राय रखी कि यूनिवर्सिटी को 27 सितंबर को होने वाले चुनाव स्थगित कर देने चाहिए या उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर देना चाहिए। वह नए सिरे से नामांकन शुरू कर सकती है या वोटिंग की अनुमति दे सकती है, लेकिन तब तक रिजल्ट घोषित न करे जब तक कि सारी गंदगी साफ नहीं कर दी जाती।

पुलिस और एमसीडी को दिया निर्देश

डीयू के चीफ इलेक्शन ऑफिसर के निर्देश पर यूनिवर्सिटी के वकील ने कहा कि सुनवाई गुरुवार को की जाए, क्योंकि अधिकारी तब तक इस पर फैसला लेने वाले हैं। इसके बाद कोर्ट ने मामले को गुरुवार को आगे की सुनवाई के लिए लगा दिया और दिल्ली पुलिस को डीयू, एमसीडी और डीएमआरसी के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सार्वजनिक संपत्ति को और गंदा न किया जा सके और पहले की गंदगी को हटा दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले स्टूडेंट साधारण लोग नहीं होते। वे संगंठित गुटों से आते हैं। डिफेसमेंट के खिलाफ कार्रवाई में डीयू की ओर से ढिलाई से नाराज कोर्ट ने कहा कि ऐसे चुनावों का क्या फायदा? आपके आदेश पर अगर अमल नहीं हो रहा है तो ये कोरे कागज से ज्यादा कुछ नहीं।

सफाई में करोड़ों की लागत

कोर्ट ने पूछा कि इस गंदगी को साफ करने में जो लागत आती है, क्या कभी किसी उम्मीदवार से उसकी भरपाई की गई? मामले में याचिका दायर करने वाले वकील प्रशांत मनचंदा ने कोर्ट को बताया कि इसकी सफाई में सालभर से ज्यादा का समय लगता है और करोड़ों की लागत आती है। इसपर कोर्ट ने कहा कि पोस्टर में लिखे नामों वाले हर उम्मीदवार से इन पैसों की वसूली की जानी चाहिए। उन्हें ऐसे ही बख्शा नहीं जा सकता। नाराज कोर्ट ने कहा कि वीसी को आज ही इस मुद्दे पर मीटिंग बुलानी चाहिए। यदि स्टूडेंट इस स्टेज पर भ्रष्ट हो जाते हैं, तो कोई अंत नहीं है।

14 कैंडिडेट्स को कारण बताओ नोटिस

सुनवाई के दौरान डीयू के वकील ने कहा कि गलती करने वाले 14 उम्मीदवारों को पहले ही कारण बताओ नोटिस जारी किया जा चुका है कि उन्हें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए अयोग्य क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए। एमसीडी के वकील ने कहा कि बड़ी संख्या में पोस्टर, बैनर और अन्य सामान हटा दिए गए हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बचा हुआ है। निगम ने पुलिस पर इसमें सहयोग नही करने का भी आरोप अदालत के सामने लगाया।

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