एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एक सार्वजनिक प्राधिकरण है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय RTI के दायरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय में RTI कानून लागू होगा। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने बेंच की ओर से इस फैसले का अधिकतर भाग लिखा। उन्होंने कहा, “पारदर्शिता न्यायिक स्वतंत्रता को कम नहीं करती है। न्यायिक स्वतंत्रता और जवाबदेही एक हाथ से दूसरे हाथ जाती है। प्रकटीकरण सार्वजनिक हित का एक पहलू है।” जस्टिस रमना और जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले का निर्णायक हिस्सा लिखा। न्यायालय ने सूचना आयुक्त से सीजेआई के कार्यालय से सूचना मांगने के लिए आनुपातिकता की परीक्षा को लागू करने के लिए कहा, जिसमें गोपनीयता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के अधिकार को ध्यान में रखा गया। न्यायमूर्ति रमना ने जस्टिस खन्ना की राय से सहमति व्यक्त की और कहा, “निजता का अधिकार और सूचना का अधिकार एक हाथ से दूसरे हाथ जाना। कोई भी दूसरे पर वरीयता नहीं ले सकता ।” न्यायमूर्ति रमना ने कहा, “न्यायपालिका को निगरानी से बचाना चाहिए। आरटीआई का इस्तेमाल न्यायपालिका पर नजर रखने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है।” जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “न्यायाधीशों की संपत्ति की जानकारी व्यक्तिगत जानकारी का गठन नहीं करती है और उन्हें आरटीआई से छूट नहीं दी जा सकती। न्यायपालिका कुल अलगाव में काम नहीं कर सकती, क्योंकि न्यायाधीश संवैधानिक पद का आनंद लेते हैं और सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करते हैं।” भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एनवी रमना, डी वाई चंद्रचूड़, दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना की संविधान पीठ ने अपील पर सुनवाई की।

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