सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशभर में ग्राम न्यायालयों की स्थापना से इंसाफ तक पहुंच बेहतर की जा सकती है। जस्टिस बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथ की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि देश की संसद ने 2008 में कानून बनाया। इससे नागरिकों को उनके घरों के नजदीक ही इंसाफ दिलाने की परिकल्पना की गई। पीठ ने कहा कि 2008 के कानून का मकसद था कि अदालतों में आने वाला कोई भी शख्स सामाजिक, आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण इंसाफ पाने से वंचित न रहे। देश की संसद ने इसके लिए जमीनी स्तर पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना का कानूनी प्रावधान तैयार किया।

कुछ राज्यों ने ग्राम न्यायालयों को गैर जरूरी बताया
तीन जजों की पीठ जिस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, इसमें केंद्र और सभी राज्यों को ग्राम न्यायालय स्थापना के लिए जरूरी कदम उठाने का निर्देश देने की अपील की गई है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से इसकी निगरानी करने का अनुरोध भी किया है। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा, कुछ राज्यों की दलील है कि उनके प्रदेशों में ग्राम न्यायालयों की जरूरत नहीं है। इन्होंने न्याय पंचायतों का हवाला देकर ग्राम अदालतों को गैरजरूरी बताया है, लेकिन पंचायतें न्यायालयों जैसी नहीं हैं। भूषण ने कहा कि अदालतों में न्यायिक अधिकारी होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बेहद अहम है, न्याय मित्र की नियुक्ति भी हुई
दलीलों को सुनने के बाद तीन जजों की पीठ ने इस मुकदमे में अदालत की मदद करने के लिए एक वरिष्ठ वकील को ‘एमिकस क्यूरी’ (अदालत मित्र) नियुक्त किया। पीठ ने कहा, जितनी जल्दी ग्राम न्यायालयों की स्थापित होगी… इंसाफ तक नागरिकों की पहुंच उतनी ही बेहतर होगी। अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि मुकदमे में पक्षकार बनाए गए कई राज्यों ने अभी तक हलफनामा दायर नहीं किया है। ऐसे राज्यों या उच्च न्यायालयों से तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

हिमाचल प्रदेश की सरकार 15 साल से मौन? सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब
इस मामले में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की तरफ से भी पैरवी की गई। अपनी दलील में वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उच्च न्यायालय साल 2009 से ही राज्य सरकार को ग्राम न्यायालय स्थापित करने के संबंध में पत्र लिख रहा है। शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि बीते 15 साल में कई बार याद दिलाए जाने के बावजूद राज्य सरकार ने ग्राम न्यायालय स्थापित करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार को अगली सुनवाई से पहले जवाब देने का निर्देश दिया और मुकदमे की सुनवाई हफ्ते बाद तय कर दी।

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