दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को एमिटी लॉ स्कूल से पूछा कि क्या वह अपने लॉ स्टूडेंट सुशांत रोहिल्ला के परिवार को अंतरिम मुआवजा देगा। 10 अगस्त 2016 में कथित तौर पर अटेंडेंस कम होने और सेमेस्टर एग्जाम में बैठने से रोके जाने के बाद सुशांत ने खुदकुशी कर ली थी। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने कहा कि वह इस घटना के लिए किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा रही है, लेकिन संबंधित संस्थान को सिस्टमेटिक फेलियर की जिम्मेदारी लेने के लिए अपने कंधे मजबूत रखने चाहिए। हायर एजुकेशन में मेंडेटरी अटेंडेंस की जरूरत पर सवाल उठाते हुए हाई कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह स्टूडेंट्स और टीचर्स समेत संबंधित हितधारकों से इस मुद्दे पर परामर्श लें और सुझावों के साथ कोर्ट में आए। इस पूरी प्रक्रिया के लिए सरकार को चार हफ्तों का वक्त दिया गया।
कोर्ट ने केंद्र को सर्कुलर जारी करने को कहा
कोर्ट ने केंद्र सरकार और यूजीसी से सभी शैक्षणिक संस्थानों को एक सर्कुलर जारी करने को कहा। उन्हें दो हफ्तों में ‘शिकायत निवारण समिति’ बनाने या कार्रवाई का सामना करने का अंतिम मौका दिया। सुशांत रोहिल्ला ने एक नोट भी छोड़ा था, जिसमें लिखा था कि वह असफल है और जीना नहीं चाहता। हाई कोर्ट घटना के बाद सितंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसे मार्च 2017 में यहां ट्रांसफर कर दिया गया था। एमिटी के वकील ने कहा कि कॉलेज प्रशासन की ओर से कोई गलती नहीं थी। क्योंकि स्यूसाइड लेटर में संस्थान में किसी को दोषी नहीं ठहराया गया था।