भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। कोर्ट ने ‘कमल’ का चिन्ह पार्टी के प्रतीक के रूप में आवंटित करने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि आप सिर्फ अपने लिए नाम और प्रसिद्धि चाहते हैं, जरा अपनी याचिका को देखिए।

जस्टिस विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है और यह पूरी तरह से प्रचार पाने के लिए दायर की गई है। याचिकाकर्ता जयंत विपत ने तर्क दिया कि चूंकि कमल का फूल भारत का “राष्ट्रीय फूल” है, इसलिए इसे किसी भी राजनीतिक दल को आवंटित नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसा आवंटन “राष्ट्रीय अखंडता के लिए अपमान है।”

याचिकाकर्ता ने कहा कि भारतीय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम यानी आरपी एक्ट 1951 के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल को मिलने वाले लाभ पाने की हकदार नहीं है।

दो अदालतों ने खारिज कर दी थी अपील

याचिकाकर्ता जयंत विपट ने 2022 में  दीवानी मुकदमा दायर किया था जिसमें दावा किया गया था कि एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा उन लाभों को प्राप्त करने की हकदार नहीं है जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार एक पंजीकृत राजनीतिक दल को उपलब्ध हैं।

उन्होंने कमल को पार्टी के चुनाव चिन्ह के रूप में इस्तेमाल करने पर रोक लगाने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की भी मांग की थी। अक्टूबर 2023 में सिविल कोर्ट ने तकनीकी आधार पर मुकदमा खारिज कर दिया था। इसके बाद, विपत ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया, जिसने भी उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

 

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