बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दुर्लभ मामले में बलात्कार की FIR को रद्द करते हुए न केवल आरोपी बल्कि पीड़ित महिला पर भी 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल, अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि 39 वर्षीय महिला और आरोपी की मुलाकात जून 2020 में हुई थी और धीरे-धीरे उनकी दोस्ती गंभीर हो गई और आरोपी उसके घर रहने लगा, जहां वह अपने दो बच्चों के साथ रह रही थी.
आरोप है कि आरोपी बच्चों की वजह से परेशान रहता था और उनके साथ मारपीट करता था. महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी उसे यह कहकर ब्लैकमेल करता था कि वह उनकी अश्लील तस्वीरें और वीडियो वायरल कर देगा और यहां तक कि उसके बच्चों को जान से मारने की धमकी भी देता था. इस तरह, आरोपी ने कथित तौर पर उससे करीब 1.75 करोड़ रुपये ऐंठ लिए और दावा किया कि उसने इसे निवेश कर दिया है. हालांकि, महिला को अपना पैसा कभी वापस नहीं मिला और इसलिए उसने इस साल अप्रैल में नवी मुंबई के खारघर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई.आरोपी को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था और उस
आरोपी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता स्वप्निल अंबुरे, रवि सूर्यवंशी और तन्वी नंदगांवकर ने कहा कि आरोपी और महिला के बीच संबंध सहमति से बने थे, लेकिन जब आरोपी महिला द्वारा दी गई अग्रिम राशि वापस नहीं कर सका तो संबंधों में तनाव आ गया और इसके बाद उसने मामला दर्ज कराया. महिला की ओर से पेश हुए अधिवक्ता करणी सिंह और सरला शिंदे ने आरोपी और उसके बीच हुए समझौते के तहत मामले को रद्द करने के लिए बिना शर्त सहमति देते हुए हलफनामा पेश किया.
न्यायमूर्ति एएस गडकरी और नीला गोखले की पीठ ने पाया कि आरोपी और महिला पिछले चार साल से रिश्ते में थे और मामला इसलिए दर्ज किया गया क्योंकि आरोपी ने ली गई राशि वापस नहीं की और इस तरह उनके संबंधों में खटास आ गई.
ने करीब 90 दिन जेल में बिताए. बाद में उसने महिला की सहमति से FIR रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
जब पीठ ने कहा कि वह FIR और उसमें चल रही कानूनी कार्यवाही को रद्द कर देगी, तो अदालत ने निर्देश दिया और अंबुरे ने प्रस्तुत किया कि आरोपी दो सप्ताह की अवधि के भीतर सशस्त्र बल युद्ध हताहत कल्याण कोष में 2,00,000 रुपये की लागत का भुगतान करेगा.
पीठ ने कहा कि चूंकि महिला आरोपी से 1.75 करोड़ रुपये की राशि वसूल कर समझौता करने में सफल रही है, इसलिए उसके वकील ने भी प्रस्तुत किया कि वह उसी समय के भीतर कल्याण कोष में 2,00,000 रुपये की लागत का भुगतान करेगी. अदालत ने इन बयानों को स्वीकार कर लिया और निर्देश दिया है कि यदि राशि जमा नहीं की जाती है तो मामला पुनर्जीवित किया जाएगा.