सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक फैसले सरकारों की पसंद के अनुरूप नहीं होने पर उनके द्वारा न्यायाधीशों की छवि खराब किये जाने को शुक्रवार को “दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया और इस “नई प्रवृत्ति” पर अफसोस जताया. चीफ जस्टिस एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार और एक व्यक्ति द्वारा दायर दो अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए यह तल्ख टिप्पणी की. भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के एक पूर्व अधिकारी के आय के ज्ञात स्रोत से कथित तौर पर अधिक धन संचित करने को लेकर उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए ये याचिकाएं दायर की गई थी.


पीठ के सदस्यों में शामिल न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली ने मामले में न्यायपालिका के खिलाफ कुछ आरोप लगाये जाने पर नाराजगी जताई. चीफ जस्टिस ने कहा, “आप चाहे जो भी लड़ाई लड़ें, वह सही है. लेकिन अदालतों की छवि खराब नहीं करें. मैं इस अदालत में भी देख रहा हूं, यह एक नया चलन है.” वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने दो अपील में से एक में राज्य सरकार की ओर से पेश होते हुए कहा कि वह इस बिंदु पर कहीं से भी जोर नहीं दे रहे हैं.


‘सरकार ने न्यायाधीशों की छवि खराब करनी शुरू कर दी है’


चीफ जस्टिस ने कहा, “नहीं, हम यह रोज देख रहे हैं. आप एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, आपने हमसे अधिक यह देखा है. यह एक नया चलन है. सरकार ने न्यायाधीशों की छवि खराब करनी शुरू कर दी है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है.” भ्रष्टाचार रोधी सक्रियतावादी उचित शर्मा की ओर से पेश हुए एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने उच्च न्यायालय द्वारा एक फैसले में ‘संभाव्यता’ के आधार पर प्राथमिकी रद्द किये जाने की कड़ी आलोचना की.


अगली सुनवाई 18 अप्रैल को


उन्होंने कहा कि आय से अधिक संपत्ति रखने की जांच स्वत: ही उस वक्त बंद हो जाएगी जब संबद्ध व्यक्ति संपत्ति का विवरण देगा. पीठ ने कहा, “आपके अनुमान लगाने एवं आरोपों के आधार पर हम इस तरह से किसी को निशाना बनाने की इजाजत नहीं देंगे.” पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 18 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दी. दवे ने कहा कि जांच अनुमानों पर आधारित नहीं थी क्योंकि आरोप यह था कि संबद्ध अधिकारी ने 2,500 करोड़ रुपये संचित किये थे.


चीफ जस्टिस ने कहा, “कल जब सरकार बदल जाएगी और दूसरी सरकार आएगी तब लाख, हजार बन जाएंगे.” छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी रद्द करते हुए कहा था कि मामला संभाव्यता पर आधारित है और संभाव्यता के आधार पर किसी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. अदालत ने यह भी कहा था कि सरकार अपने मामले के समर्थन में दस्तावेज दाखिल करने में नाकाम रही.

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