बॉम्बे हाई कोर्ट ने लाइलाज बीमारी में मौत को सरल बनाने वाली Living Will (वसीयत) से जुड़ी PIL पर केंद्र और राज्य सरकार के साथ ही BMC से जवाब मांगा है। PIL में ऐसी विल के लिए जरूरी तंत्र विकसित करने में प्रशासन की विफलता को उजागर किया गया है। मुंबई के Gynecologist डॉ़. निखिल दातार ने यह PIL दायर की है। शुक्रवार को चीफ जस्टिस D. K. उपाध्याय और जस्टिस आरिफ डॉक्टर की बेंच ने सरकार और BMC को 6 सप्ताह में याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया है।

सुनवाई के बाद बेंच ने कहा कि याचिका में महत्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दे को उठाया गया है। Living Will के लिए जरूरी है कि एक अलग ऑफिस स्थापित किया जाए और आवश्यक नियुक्तियां हो। याचिका में Living Will के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए निर्देशों को लागू करने की मांग की गई है।

क्या है Living Will?
Living Will एक लिखत कानूनी दस्तावेज़ है, जिसमें एक व्यक्ति द्वारा दिए गए अग्रिम चिकित्सा निर्देश शामिल होते हैं। विल में व्यक्ति यह साफ करता है कि वह अचेत अवस्था और असाध्य बीमारी के इलाज में जीवन रक्षक उपकरणों को अपनाएगा की नहीं। चिकित्सा क्षेत्र के आविष्कार ने मरना मुश्किल कर दिया है। सांसों के अवसाद से मुक्ति दिलाने में Living Will महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। डॉक्टर इलाज से जुड़ी नैतिकता से बंधे होते है, वहीं रिश्तेदार उपचार को लेकर पसोपेश में रहते हैं। ऐसे में, Living Will उपचार की दिशा तय करने में काफी कारगर होती है।

ऐडवोकेट सुमेधा राव के मुताबिक, निर्णय लेने में सक्षम कोई भी वयस्क यह विल कर सकता है। इसके लिए दो गवाहों और एक एग्जिक्यूटर की जरूरत पड़ती है। यह विल इंसान के जीवनकाल में ही लागू होती है। नियमानुसार, ऐसी विल की सुरक्षा के लिए स्थानीय निकायों को संरक्षक (कस्टोडियन) नियुक्ति करने का निर्देश दिया गया है।

एक साल बाद भी नहीं बनी व्यवस्था
इससे पहले डॉ़ दातार ने बेंच को Living Will के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 24 जनवरी, 2023 को दिए गए फैसले की जानकारी दी। एक साल बीत जाने के बावजूद सरकार और स्थानीय निकायों की ओर से ऐसी विल के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एक चिकित्सा बोर्ड और संरक्षक नियुक्त करने का निर्देश दिया था। जो न सिर्फ ऐसी विल का सत्यापन करेगा बल्कि उसे सुरक्षित भी रखेगा। दातार के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि गरिमा के साथ मरने का हक एक मौलिक अधिकार है। इस अधिकार के मद्देनजर Living Will का विकल्प दिया गया है। डॉ़ दातार ने कहा कि इस विल की व्यवस्था के संबंध में उन्होंने BMC से आरटीआई से जानकारी मांगी थी मगर BMC ने जवाब में कहा कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

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