सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में बीमा कंपनियों और ग्राहकों के बीच विवाद को सुलझाते हुए साफ किया है कि किस तारीख से किसी बीमा को प्रभावी माना जाएगा और कब से कोई बीमाकर्ता उस बीमे के लिए दावा कर सकता है। उपभोक्ता संरक्षण फोरम के एक फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि पॉलिसी जारी होने की तारीख ही सभी मामलों में प्रभावी तारीख होगी।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने बीमा सुरक्षा के संदर्भ में यह फैसला सुनाया है। अदालत के सामने मुद्दा यह था कि वह कौन सी तारीख होगी, जिससे पॉलिसी प्रभावी मानी जाएगी; क्या यह वह तारीख होगी जिस दिन पॉलिसी जारी की जाती है या पॉलिसी में उल्लिखित प्रारंभ की तारीख होगी, या जमा रसीद या कवर नोट जारी करने की तारीख होगी। इस पर  सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पॉलिसी जारी करने की तारीख ही सभी उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक और प्रभावी तारीख होगी।

समाचार पत्रिका की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा, “वर्तमान अपीलों में, हमें बैकडेटिंग का ऐसा कोई मुद्दा नहीं मिला है, लेकिन पॉलिसी जारी करने की तारीख सभी उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक तारीख होगी, न कि बीमा प्रस्ताव की तारीख या बीमा रसीद जारी करने की तारीख।”

इसके साथ ही कोर्ट ने उपभोक्ता फोरम के आदेश को  खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रीमियम की प्रारंभिक जमा रसीद जारी करने की तारीख से ही पॉलिसी शुरू होने की तारीख मानी जाएगी। अपने फैसले में, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रस्ताव की तारीख को पॉलिसी की तारीख के रूप में नहीं माना जा सकता जब तक कि प्रीमियम जमा न हो। इसने यह भी स्पष्ट किया कि केवल चेक जमा करना पॉलिसी के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के पास अपील के दो ऐसे मामले आए थे, जिसमें बीमित व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी। जिला उपभोक्ता फोरम, राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग ने माना कि अपीलकर्ता (रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) बीमित व्यक्ति की मृत्यु पर बीमा राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है लेकिन रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मामले में कोर्ट ने पॉलिसी की सेवा शर्तों की जांच की, जिसके खंड 9 जो आत्महत्या से जुड़ा है, में कहा गया है, “यदि बीमित व्यक्ति, चाहे वह स्वस्थ हो या पागल, इस पॉलिसी के जारी होने की तारीख से या इस पॉलिसी की किसी भी पुनर्बहाली की तारीख से 12 महीने के भीतर आत्महत्या करता है, तो कंपनी मृत्यु पर कोई दावा स्वीकार नहीं करेगी और कोई राशि का भुगतान नहीं होगा।” इसके आधार पर कोर्ट ने कहा कि पॉलिसी जारी करने की तारीख ही प्रभावी और प्रासंगिक तारीख होगी, भले ही पॉलिसी बैकडेट में क्यों ना खरीदी गई हो।

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