इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों, सिपाहियों, मुख्य आरक्षियों, दरोगाओं एवं पुलिस इंस्पेक्टरों की सत्यनिष्ठा रोके जाने का दंड देना गैरकानूनी करार दिया है। साथ ही दंडादेश निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने याचीगणों को समस्त सेवा लाभ देने के आदेश पारित किया है। हाईकोर्ट ने यह आदेश नोएडा, मेरठ एवं बरेली में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर गिरिश चन्द्र जोशी, बृजेन्द्र पाल सिंह राना, विकास सिंह, वीरेन्द्र सिंह, रविशंकर, पुष्पेन्द्र कुमार, जितेन्द्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों की अलग अलग याचिकाओं पर पारित किया है।याचीगण के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम, अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम एवं अनुरा सिंह ने कोर्ट के समक्ष साक्ष्यों को रखते हुए कहा कि उ०प्र० अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम चार में जो दंड प्रतिपादित किए गया है, उसमें सत्य निष्ठा रोकने के दंड का प्रावधान नहीं है। इस कारण उक्त दंड पुलिस अधिकारियों को प्रदान नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने समस्त तथ्यों एवं विधि के सिद्धांतों पर विचार करने के पश्चात आदेश पारित किया कि उत्तर प्रदेश पुलिस अफसरों को सत्य निष्ठा रोके जाने का दंड नहीं दिया जा सकता।याचीगणों के सत्यनिष्ठा रोके जाने के आदेश 2020 में दिए गए थे। याचीगणों पर आरोप था कि जब यह लोग एसओजी जनपद बरेली में नियुक्त थे तो अन्य एसओजी में नियुक्त सहकर्मियों के साथ अवैध स्रोतों से प्राप्त धनराशि के बंटवारे को लेकर विवाद कर रहे थे। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। तत्पश्चात इन पुलिस कर्मियों के विरुद्ध थाना कोतवाली जनपद बरेली में दिनांक 14 अक्तूबर 2020 को अपराध संख्या 535/2020 धारा 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम पंजीकृत किया गया। याचीगणों कर्तव्यों के प्रति राजकीय दायित्वों का निर्वहन न करने का आरोप था। इनके कार्याें से जनता में पुलिस की छवि धूमिल हुई।

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