दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार को कुछ आगामी सरकारी अस्पतालों के पूरा न होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है कि निर्माण पर पैसा खर्च होने के बाद वे जीर्ण-शीर्ण न हो जाएं या ‘मुकदमेबाजी में फंस न जाएं’.
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की बेंच ने कहा कि कुछ परियोजनाएं लगभग 85 प्रतिशत से अधिक पूरी हो चुकी हैं और इसमें और देरी से खर्च बढ़ेगा. बेंच ने कहा, ‘संबंधित मंत्री को परियोजना को पूरा करने का रास्ता खोजना होगा. इसमें भारी पैसा लगाया गया है.’
2017 में शुरू हुआ था मामला
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि इस मुद्दे से निपटने के लिए पहले ही एक समिति गठित की जा चुकी है. अदालत ने आगे अपनी टिप्पणी में कहा कि परियोजनाएं ‘अव्यवस्थित’ थीं और फिलहाल अधूरी हैं. बेंच की यह टिप्पणी सरकारी अस्पतालों में देखभाल की कथित कमी को लेकर 2017 में शुरू किए गए एक स्वत: संज्ञान मामले पर आई है.
दिल्ली सरकार ने दायर की थी स्टेटस रिपोर्ट
पहले मामले में दायर एक स्टेटस रिपोर्ट में, दिल्ली सरकार ने कहा था कि वह राष्ट्रीय राजधानी में 11 ‘ग्रीनफील्ड’ और 13 ‘ब्राउनफील्ड’ अस्पतालों का निर्माण कर रही है. अदालत ने एम्स निदेशक को क्रिटिकल केयर में सुधार के संबंध में प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ एसके सरीन के तहत एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया था.
‘AIIMS निदेशक के फैसले लागू किए जाएं’
अदालत ने मंगलवार को दोहराया कि सरकार और अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस संबंध में एम्स निदेशक द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू किया जाए. अदालत ने टिप्पणी की कि मुख्य सचिव समेत शहर के वरिष्ठ अधिकारियों की एम्स निदेशक के साथ समीक्षा बैठक आठ नवंबर को होगी और सुनवाई 13 नवंबर को तय की गई.