मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अप्रत्याशित मामले में ट्रायल कोर्ट के जज के खिलाफ ही जांच के आदेश दे दिए हैं। यहां तक कहा गया है कि जज ने अपनी ड्यूटी ठीक तरह से नहीं निभाई, उनकी तरफ से जरूरी बातों का ध्यान नहीं रखा गया। असल में यह मामला एक नाबालिग के रेप से जुड़ा हुआ है। उस केस में आरोपी एक आदिवासी है और आरोप लगा है कि जज ने DNA रिपोर्ट्स को ही नजरअंदाज कर दिया। उसी चूक पर एमपी हाई कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है।

आखिर जज पर क्यों भड़का हाई कोर्ट?
असल में 21 सितंबर को अपने फैसले में जस्टिल विवेक अग्रवाल और देवनारायण मिश्रा ने कहा कि स्पेशल पॉस्को जज विवेक सिंह रघुवंशी और सहायक जिला अभियोजन अधिकारी बीके वर्मा ने अपनी ड्यूटी निभाते वक्त लापरवाही की है, जिस तरह से 14 साल की बच्ची के साथ रेप मामले में फैसला सुनाया गया, वो ठीक नहीं। हाई कोर्ट ने जोर देकर बोला कि बीके वर्मा के खिलाफ जांच की जाएगी क्योंकि उन्होंने ट्रायल ठीक से नहीं किया, DNA रिपोर्ट को भी नजरअंदाज किया गया।

जज से क्या-क्या चूक हुई?
इसके ऊपर जज को लेकर कहा गया उन्हें सेक्शन 313 के तहत आरोपी का बयान जरूर दर्ज करना चाहिए था। इसे एक बड़ी भूल के रूप में माना जा रहा है। अभी के लिए मध्य प्रदेश हाई ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट को नया फैसला सनाने को कहा है, यहां तक बोला गया है कि आरोपी को गवाहों को क्रॉस एग्जामिन करने का मौका मिलना चाहिए। अब इतना सबकुछ हाई कोर्ट ने इसलिए कहा है क्योंकि सुनवाई के दौरान इस बात का भी जिक्र हुआ कि पुलिस ने DNA रिपोर्ट ट्रायल कोर्ट को सौंपी थी। उसके बाद ही उसकी फाइडिंग को नजरअंदाज कर दिया गया।

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