इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्तियों में भी हिंदी के प्रति रुझान लगातार बढ़ रहा है। न्यायमूर्तियों ने हिंदी में आदेश देकर न्यायिक व्यवस्था को आमजनमानस के करीब लाया है। न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने पांच सालों में 21 हजार से अधिक फैसले हिंदी में देकर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। अधिवक्ताओं ने न्यायालयों के इस कदम की सराहना की है।
न्यायमूर्ति गौतम चौधरी के अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी, न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव सहित तमाम न्यायमूर्ति हजारों फैसले हिंदी में दे चुके हैं। हाईकोर्ट बार के पूर्व अध्यक्ष राकेश पांडेय, राधाकांत ओझा, अमरेंद्रनाथ सिंह सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ता कहते हैं कि न्यायालयों के यह कदम न्यायिक व्यवस्था को लोगों के करीब सात है। यह हिंदी का सम्मान है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में हिंदी में बहस और फैसला देने का चलन निरंतर बढ़ रहा है। इससे हाईकोर्ट की अलग पहचान बन रही है। कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का हिंदी में दिया जाना लोगों को उत्साहित करने वाला है। न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी ने पांच वर्ष के अल्प कार्यकाल में 21 हजार से अधिक फैसले हिंदी में देकर इतिहास रचा है। जबकि, अन्य जजों के फैसले को जोड़ दिया जाय तो यह संख्या 30 हजार से अधिक पहुंच जाएगी।
उच्च न्यायालय में निरंतर बढ़ रहा हिंदी का प्रयोग
जनमानस की ओर से क्षेत्रीय भाषाओं में न्याय देने की मांग लंबे समय से उठाई जा रही है। उस दिशा में सार्थक पहल हो रही है। प्रदेशवासियों को 17 मार्च 1866 से न्याय दिला रहे ऐतिहासिक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। इसमें न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी, न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी व न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
न्यायमूर्ति डॉ. गौतम व न्यायमूर्ति शेखर 12 दिसंबर 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए हैं। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी का हिंदी से अगाध प्रेम है, वह लगातार हिंदी में निर्णय दे रहे हैं। उन्होंने ‘पति पर पत्नी-संतानों के भरण-पोषण का वैधानिक व सामाजिक दायित्व, फर्जी बीएड डिग्री वाले अध्यापकों की बर्खास्तगी को सही करार देने सहित सैकड़ों निर्णय हिंदी में दिए हैं।
हिंदी में निर्णय की परंपरा
अंग्रेजी माध्यम से शुरुआत शिक्षा ग्रहण करने वाले न्यायमूर्ति डॉ. गौतम का हिंदी के प्रति गहरा लगाव है। उन्होंने अभी तक लगभग हजारों निर्णय हिंदी देकर इतिहास रचा है। उन्होंने ठोस आधार के बगैर अभियुक्त को हिरासत में लेना मूल अधिकारों का हनन जैसा चर्चित निर्णय हिंदी में दिया है। वहीं, न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव आठ हजार से अधिक निर्णय दे चुके हैं। इसमें विवाह के लिए जोर जबरदस्ती से मतांतरण गलत, राम के बिना भारत अधूरा, समलैंगिक विवाह असंवैधानिक जैसे महत्वपूर्ण निर्णय इसी वर्ष दिए गए हैं।
1980 से हिंदी में फैसला देने का बड़ा रुझान
इलाहाबाद हाई कोर्ट में 1980 के दशक में न्यायमूर्ति रहे प्रेम शंकर गुप्त ने हिंदी के कामकाज को बढ़ावा दिया था। उन्होंने हिंदी में निर्णय देने की शुरुआत की थी। अपने 15 वर्ष के न्यायाधीश के कार्यकाल में उन्होंने चार हजार से अधिक निर्णय हिंदी में दिए। इनके बाद न्यायमूर्ति शंभूनाथ श्रीवास्तव अपने कार्यकाल में सुबह 10 से 11 बजे तक हर निर्णय हिंदी में देते थे।
छत्तीसगढ़ का लोकायुक्त रहते हुए आठ सौ से अधिक मुकदमे हिंदी में निर्णीत किए। उन्होंने ‘क्या भारत में न्यायालयों की भाषा हिंदी व प्रादेशिक भाषा होनी चाहिए’ शीर्षक से किताब भी लिखी है। न्यायमूर्ति रामसूरत सिंह, न्यायमूर्ति बनवारी लाल यादव, न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय व न्यायमूर्ति आरबी मेहरोत्रा ने अपने कार्यकाल में सैकड़ों निर्णय हिंदी में दिए हैं।