By(Nandita jha)
आए दिन वॉट्सएप पर अश्लील या अपमानजनक मैसेज के मामले सामने आते रहते हैं। देश में पिछले कुछ समय से इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। साइबर क्राइम बढ़े हैं। हालांकि इसके लिए कानून भी है, फिर भी लोगों को इस संबंध में जानकारी कम है, कई लोग मोबाइल का गलत स्विच दबाकर इसकी चपेट में आ जाते हैं। पिछले माह रमजान की बात है। वॉट्सएप के ग्रुप में दो व्यक्तियों ने पैगम्बर मोहम्मद साहब पर अनावश्यक टिप्पणी की। पुलिस को इसकी जानकारी दी गई। दोनों को गिरफ्तार कर आईपीसी की धारा 295 (ए) तथा आईटी एक्ट में धारा 66 लगाई गई। कुछ दिनों बाद वे रिहा हुए। दूसरी घटना में एक्टर हरप्रीत पर आरोप लगा कि उसने एक प्रोडक्शन हाउस के मालिक की आइडेंटिटी का इस्तेमाल कर वॉट्सएप पर एक फर्जी अकाउंट बनाया। वह लड़कियों और मॉडलों के फोटो मंगवाता, पैसा मांगता, शोषण करता, ब्लैकमेल करता। साइबर सेल ने आरोपी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया।
तीसरी घटना में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी का फेसबुक अकाउंट हैक कर उससे बदला निकाला। पत्नी ने शिकायत की। पति को दोषी पाया। मामला दर्ज हो गया। सोशल मीडिया के दुरुपयोग के मामले बड़ी तादाद में सामने आ रहे हैं। संसद ने सन 2000 में सूचना तकनीक अधिनियम पारित किया। फिर इसे 2008 व 2009 में संशोधित किया गया। संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली में सूचना तकनीक की आदर्श नियमावली के बाद यह कानून पेश करना जरूरी हो गया था। भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य कानून 1872, बैंकर्स बुक्स एविडेंस एक्ट 1891 और रिजर्व बैंक अधिनियम या किसी अन्य कानून में संशोधन में भी इन दस्तावेजों का उपयोग हो सकता है। सूचना तकनीक कानून 2000 के तेरहवें अध्याय में 94 धाराएं हैं। इस कानून में
कुछ आरोप दिए हैं, जिन पर दंड होता है, वे निम्न हैं-
– कंप्यूटर संसाधनों से छेड़छाड़ (धारा 65)
– कंप्यूटर का डेटा छेड़ना या हैक करना (धारा 66) – इससे प्रतिबंधित सूचनाएं भेजना- (धारा 66ए) – सूचनाएं चुराने पर दंड ( धारा 66बी) – किसी की पहचान चोरी करने पर (धारा 66सी) – पहचान छिपाकर कंप्यूटर से किसी के व्यक्तिगत डेटा से छेड़छाड़ (धारा 66डी) – किसी की निजता भंग करने के लिए (धारा 66ई) – साइबर आतंकवाद के लिए दंड (धारा 66एफ)
– आपत्तिजनक सूचनाओं का प्रकाशन (धारा 67) – फर्जी डिजिटल हस्ताक्षर (धारा 73)।
इसके अलावा भारतीय दंड संहिता में साइबर अपराधों से संबंधित प्रावधान भी हैं, जो इस प्रकार हैं- ई-मेल पर धमकी भरा संदेश भेजा तो धारा 503 के तहत कार्रवाई, मानहानि वाले संदेश भेजने पर धारा 499 के अंतर्गत मामला, फर्जी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का इस्तेमाल किया तो धारा 463 आरोपित की जाती है।
दिल्ली में देश की पहली साइबर रेगुलेटरी कोर्ट का शुभारंभ जुलाई 2009 को हुआ। देश के कई बड़े शहरों में साइबर थाने खोले गए हैं। जिलों में साइबर सेल का गठन किया है, जो इन मामलों को सुनते हैं।
धारा 69 (ए) के तहत पुलिस को अधिकार है कि वह किसी भी वेबसाइट को ब्लॉक कर सकती है। आईटी अधिनियम की धारा 66ए पिछले साल विशेष चर्चा में आई, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसे निरस्त कर दिया था। शिखर अदालत ने माना कि इस धारा में प्रयुक्त भाषा का दुरुपयोग भविष्य में हो सकता है। भले ही अदालत ने इस धारा को निरस्त कर दिया हो, लेकिन फिर भी किसी भी व्यक्ति को बेलगाम होकर गलत बातें लिखने की आज़ादी नहीं है। अभी भी भारतीय दंड संहिता में बहुत से प्रावधान हैं, जिनमें दंड की व्यवस्था है। पुलिस और सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने जरूर इंगित कर दिया है कि आम नागरिक की जायज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को 66ए की आड़ में न कुचला चाए। दूसरी ओर सरकार भी 66ए में बदलाव कर इसे आगे बहाल करने के लिए काम कर रही है। गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट निर्णय के प्रभावों का अध्ययन करने और उचित बदलावों, सुरक्षात्मक उपायों तथा इसे पूरी तरह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप बनाने के लिए सुझाव मांगे हैं। इसके लिए एक समिति बनाई है।