नई दिल्ली। देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान उत्तराधिकार और विरासत कानून की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा हैं।
- अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर की गई इस याचिका में उत्तराधिकार और विरासत के नियम कानूनों में व्याप्त विसंगतियों को दूर कर सभी के लिए समान नियम बनाने की मांग की गई ।
- सभी नागरिकों के लिए समान नियम कानून लागू करने की मांग वाली यह पांचवी याचिका है जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
याचिका में मांग की गई है कि सभी भारतीय नागरिकों के लिए उत्तराधिकार और विरासत के नियम कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 14(कानून के समक्ष समानता), 15(किसी के भी साथ धर्म, जाति, वर्ण, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) और 44 (समान नागरिक संहिता) की भावना के अनुरूप समान बनाया जाए। याचिका में विभिन्न धर्मों में प्रचलित उत्तराधिकार और विरासत के नियमों- कानूनों मे विसंगतियों को उजागर करते हुए कहा गया है कि हिंदू उत्तराधिकार कानून में तो लिंग आधारित भेदभाव कम है। 2005 में कानून संशोधन के बाद बेटियों को भी बेटे के समान पैत्रिक संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिया गया है। हालांकि अभी भी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में कुछ भेदभाव हैं लेकिन ईसाई, पारसी और मुस्लिम पर्सनल ला में संपत्ति के उत्तराधिकार और विरासत में लिंग आधारित भेदभाव काफी ज्यादा हैं।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामसुब्रमणियन की पीठ ने उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील किरन सूरी को सुनने के बाद गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को याचिका का जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले में दाखिल की गई एक हस्तक्षेप अर्जी को भी इजाजत दे दी है।
समान नियम कानून लागू करने की मांग वाली यह पांचवी याचिका
सभी नागरिकों के लिए समान नियम कानून लागू करने की मांग वाली यह पांचवी याचिका है जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इससे पहले पिछले साल 16 दिसंबर को सभी नागरिकों के लिए तलाक और भरण पोषण के नियम एक समान करने की मांग वाली याचिका पर भी नोटिस जारी हुआ था। अदालत ने इस याचिका को एक समान उत्तराधिकार और विरासत कानून की मांग वाली याचिका के साथ सुनवाई हेतु संलग्न कर दिया।
इसी वर्ष जनवरी में भी कोर्ट ने गोद लेने और संरक्षक के एक समान नियम, दो फरवरी को महिला और पुरुष की विवाह की न्यूनतम आयु समान करने की मांग वाली याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट इन पांचो याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए संलग्न कर चुका है। जो अश्वनी कुमार उपाध्याय द्वारा दाखिल की गई थी।
हर धर्मों का उत्तराधिकार अधिनियम अलग-अलग
बता दें कि देश में अभी अलग-अलग धर्मों के लिए उत्तराधिकार अधिनियम अलग-अलग हैं। हिंदू के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 है जबकि मुस्लिम में ये शरियत लॉ 1937 से रेग्युलेट होता है। ईसाई और पारसी धर्म में इंडियन सक्सेशन एक्ट 1925 लागू है। मौजूदा नियम के तहत हिंदू महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार है, लेकिन मुस्लिम, ईसाई और पारसी महिलाओं को यह अधिकार नहीं है। हिंदुओं के बेटों और बेटियों को समान अधिकार है जबकि बाकी धर्मों में बेटों और बेटिंयों के अधिकारों में अंतर है। हिंदू, पारसी और ईसाई महिला को विल यानी वसीयत बनाने का अधिकार है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को ये अधिकार नहीं है। हिंदू पत्नी को बाकी वारिस की तरह हिस्सा मिलने का अधिकार है, लेकिन ईसाई, पारसी और मुस्लिम पत्नी को ये अधिकार नहीं है।