चीफ जस्टिस ने जस्टिस इंदु मल्होत्रा की तारीफ करते हुए कहा कि, वह उनके कौशल के बारे में कुछ नहीं बोलना चाहते क्योंकि उनके फैसले ज्ञान व विवेक से भरे हुए हैं। इस मौके पर जस्टिस मल्होत्रा भावुक हो गईं। उनकी हालत यह हो गई कि वह अपना विदाई भाषण भी पूरा नहीं कर पाईं। इस पर प्रधान न्यायाधीश एसए बोबड़े ने स्थिति संभाली और जस्टिस मल्होत्रा से कहा कि वह आगे कभी अपना अधूरा भाषण पूरा करें।
अटॉर्नी जनरल बोले- अच्छे जज जल्दी रिटायर हो जाते हैं
इस मौके पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, यह एक विडंबना है कि अच्छे जज बहुत जल्दी रिटायर हो जाते हैं। न्यायाधीशों की रिटायरमेंट उम्र 70 साल की जाना चाहिए। जस्टिस इंदु मल्होत्रा को यहां कम से कम 10 साल और काम करना चाहिए था। यह दुखद है कि शीर्ष कोर्ट में जज 65 साल की उम्र में ही रिटायर हो जाते हैं।
अधिवक्ता से सीधे सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला
इंदु मल्होत्रा 27 अप्रैल, 2018 को सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बनी थीं। वह पहली ऐसी महिला अधिवक्ता थीं जो वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बनींं। करीब तीन साल की सेवा के बाद वे शुक्रवार को रिटायर हो गईं। उनके पिता ओमप्रकाश मल्होत्रा भी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील थे। अंतिम दिन वह चीफ जस्टिस बोबड़े की पीठ में बैठीं। उन्हें विदाई देने के लिए अटॉर्नी जनरल समेत सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मौजूद थे।
सबरीमाला केस में दिया था अलग फैसला
वेणुगोपाल ने केरल के चर्चित सबरीमाला मामले की सुनवाई का जिक्र करते हुए कहा कि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ही वह जज थीं, जिन्होंने चार पुरुष न्यायाधीशों से अलग राय जाहिर की थी। बता दें, इस मामले में चारों पुरुष न्यायाधीशों ने महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश देने की बात कही थी, जबकि इंदु मल्होत्रा ने इसके खिलाफ राय दी थी।