सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार और कोलकाता नगर निगम को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि शहर में “शत्रु संपत्ति” पर अवैध और अनधिकृत निर्माण को तुरंत ध्वस्त किया जाए। बता दें कि शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 के तहत, शत्रु संपत्ति को किसी शत्रु, शत्रु विषय या शत्रु फर्म के स्वामित्व वाली, उसके पास रखी या प्रबंधित की गई संपत्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।
‘HC के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ को दें रिपोर्ट’
न्यायमूर्ति कांत ने खुली अदालत में आदेश सुनाते हुए कहा, दूसरे शब्दों में, पश्चिम बंगाल राज्य, कोलकाता नगर निगम, भारत के शत्रु संपत्ति के संरक्षक और अन्य सभी संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार अवैध और अनधिकृत निर्माण को तुरंत ध्वस्त कर दिया जाए और अनुपालन रिपोर्ट उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ को सौंपी जाए।
नगर निकाय के वकील की दलील पर पीठ की टिप्पणी
वहीं जब इस मामले में नगर निकाय के वकील ने कहा कि साइट पर अवैध निर्माण को ध्वस्त करने में समय लग रहा है, क्योंकि उन्हें सत्यापन करने की आवश्यकता है, तो पीठ ने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य और नगर निगम मिलीभगत कर रहे हैं। इस पर भारत के शत्रु संपत्ति के संरक्षक की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि उन्हें कोई सहयोग नहीं मिल रहा है और इमारत को खाली कराने के लिए उन्हें केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की मदद लेनी पड़ी।
कलकत्ता HC के आदेश को दी गई थी चुनौती
शीर्ष अदालत ने भारत के शत्रु संपत्ति के संरक्षक की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के 22 अगस्त, 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसने निर्देश दिया था कि नगर भवन न्यायाधिकरण के गठन तक अवैध निर्माण के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। उच्च न्यायालय ने कोलकाता नगर निगम के कार्यकारी अभियंता की तरफ से 30 दिसंबर, 2022 को पारित आदेश के खिलाफ एक याचिका पर निर्देश पारित किया था, जिसमें शहर के केशव चंद्र सेन स्ट्रीट पर स्थित उक्त शत्रु संपत्ति पर अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया था, जो पहले पाकिस्तानी नागरिकों की थी।