जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस वी रामासुब्रह्मण्यम की पीठ ने गणतंत्र दिवस पर कैदियों को रिहा करने की उत्तर प्रदेश सरकार की नीति को भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा कि उम्रकैद पाए उन कैदियों को भी प्रीमेच्योर रिलीज करने पर भी विचार करना चाहिए जो किसी कारणवश आवेदन नहीं कर पाते।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि , एक वर्ष में सिर्फ किसी खास एक दिन पर उम्रकैद की सजा काट रहे कैदियों को प्रीमेच्योर रिलीज करने का मापदंड भेदभावपूर्ण हैं । क्योंकि ऐसा मापदंड होने का कोई आधार नहीं है। और अनुच्छेद-161 उम्रकैद की सजा पाए कैदियों पर भी समान रूप से लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह भी संभव है कि कैदियों को इस बारे में जानकारी न हो कि उन्हें रियायत के लिए आवेदन या और कुछ करना होता है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी विधिक सेवा प्राधिकरण से याचिकाकर्ताओं और ऐसे अन्य कैदियों पर भी निगरानी रखने के लिए कहा जो , प्रीमेच्योर रिलीज होने की श्रेणी में आते हैं पर किसी कारणवश आवेदन दाखिल करने में असमर्थ हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते उसका यह दायित्व है कि वह समय-समय पर ऐसे कैदियों का मूल्यांकन करें।
पीठ ने कहा की हम उस नीति को भी अस्वीकार करते है जिसके तहत सिर्फ वहीं कैदी प्रीमेच्योर रिलीज के हकदार हैं जो रियायत का आवेदन दाखिल करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गौर किया कि वर्ष 2018 की नीति जेलों में भीड़भाड़ कम करने के उद्देश्य से बनाई गई थी। कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी के इस दौर में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि जेलों से भीड़भाड़ कम की जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी को देखते हुए एक आदेश देते हुए कहा था , कि जेलों में भीड़ कम करें। ऐसे आरोपी जिन्हें अधिकतम सात साल की सजा की संभावना है उन्हें जेल में न इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी को देखते हुए आदेश दिया है कि सभी कैदियों को पर्याप्त मात्रा में मेडिकल सुविधाएं मिलनी चाहिए.