इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संगठित अपराध और गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताई है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार से कहा है कि वह ऐसा सिस्टम बनाए, जिससे अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो सके और मामले समय पर आगे बढ़ें। इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने राजेंद्र त्यागी और दो अन्य की याचिका पर गृह सचिव से हलफनामा मांगते हुए तीन सवाल पूछे हैं। वहीं, हाईकोर्ट ने डीजीपी (अभियोजन) को आदेश दिया है कि 10 साल में गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज मामलों का जिलेवार रिकॉर्ड प्रस्तुत किया जाए।
कितने केस दर्ज हुए, कितनों में चार्जशीट दायर की गई, कितने दोषी ठहराए गए और कितने आरोपित बरी हुए। यह तुलना कमिश्नरेट और नॉन-कमिश्नरेट जिलों दोनों से की जाएगी। साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी की कि बड़े माफिया के मामलों में दशकों तक चार्जशीट दाखिल नहीं होती और पुलिस की जवाबदेही तय नहीं की जाती है। अक्सर केवल निचले स्तर के अफसरों पर कार्रवाई होती है। जमानत शर्तों के उल्लंघन, केस टलवाने और अभियोजन की कमजोर पैरवी पर भी अदालत ने कड़ी नाराजगी जताई।
प्रमुख सचिव गृह की ओर से दाखिल हलफनामे में बताया गया कि 10 लाख से अधिक आबादी वाले जिलों में कमिश्नरेट लागू है। वहां पुलिस कमिश्नर व डीसीपी की संयुक्त बैठक से डीएम को अलग रखा गया है। संगठित, आर्थिक, रियल एस्टेट व साइबर अपराधों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए पुलिस कमिश्नरेट को मजिस्ट्रेट का अधिकार दिया गया है। कोर्ट ने इस मामले में गृह सचिव से विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है। अब मामले की अगली सुनवाई नौ दिसंबर को होगी।

