दिल्ली: उच्च न्यायालय ने जवाहर लाल विश्वविद्यालय (जेएनयू) के उस छात्र को निष्कासित करने के फैसले को रद्द कर दिया। कथित तौर पर छात्र के लैपटॉप में आपत्तिजनक वीडियो पाया गया था। न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने 13 साल से अधिक समय के बाद आए फैसले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के घोर उल्लंघन के लिए विश्वविद्यालय की निंदा की और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि छात्र बलबीर चंद अपनी मास्टर डिग्री को सर्वोत्तम संभव तरीके से पूरा करें, यदि वह इसे पूरा करना चाहता है।
उन्होंने टिप्पणी की कि इस प्रकरण की शुरुआत से ही जेएनयू छात्र को अपने परिसर से हटाने के पूर्व निर्धारित इरादे से काम कर रहा था। अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि उसे कारण बताओ नोटिस जारी करने के 24 घंटे के भीतर निष्कासित करने का आदेश पारित किया गया था।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल करने का अवसर महज दिखावा था इससे ज्यादा कुछ नहीं। यह चिंता का विषय है कि जेएनयू जो एक प्रमुख विश्वविद्यालय है ने इस तरह से काम किया है। चूंकि यह घटना 12 साल पुरानी है, इसलिए वे इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकते। छात्र बलबीर चंद ने 2012 में उन्हें परिसर से निष्कासित करने और विश्वविद्यालय के रोल से उनका नाम हटाने के जेएनयू वीसी के फैसले को चुनौती दी थी।