इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बहुत ही अहम फैसले में स्पष्ट किया कि अंशकालिक कर्मचारी भी पूर्णकालिक कर्मचारी के समान वेतन के हकदार हैं। यह सिद्धांत उन दैनिक, अस्थाई और अनुबंधित कर्मचारियों पर भी लागू होता है, जो नियमित कर्मचारियों की तरह ही ड्यूटी करते हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला ने भारत गिरि की याचिका पर आदेश पारित करते हुए टिप्पणी की है, जिसमें लवलेश शुक्ल अधिवक्ता उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने बहस किया है।
याची की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता लवलेश शुक्ल ने तर्क दिया कि याची अंशकालिक माली है, लेकिन उसे न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता है, जबकि याची के कार्य की प्रकृति पूर्णकालिक है, लेकिन वह कम पैसे में अपनी इच्छा के विरूद्ध कार्य करने को मजबूर है। अतः समान वेतन देने से इन्कार करना शोषणकारी, दमनकारी और विभेदकारी है। साथ ही संविधान में उल्लिखित समान कार्य के लिए समान वेतन के लक्ष्य का भी घोर उल्लघंन है।
न्यायालय ने इस विभेद को संविधान की मूल भावना के विपरीत माना और कहा कि यदि कोई कर्मचारी दूसरे कर्मचारी के समान काम या जिम्मेदारी निभाता है तो उसमें विभेद नहीं किया जाना चाहिए और वह समान वेतन का हकदार हैं और आदेशित किया कि याचिकाकर्ता भी समान वेतन पाने का हकदार हैं। अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की कई नजीरों का हवाला दिया।