छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण पर अपने स्थगन आदेश को संशोधित करने या रद्द करने की मांग करने वाली छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका खारिज कर दी है। मामले में अगली सुनवाई जनवरी 2024 को होगी।


क्या है मामला: 

22 अक्टूबर, 2019 को छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रमोशन में कोटा को लेकर एक अधिसूचना जारी की। इसमें वर्ग-1 से वर्ग-4 तक के सरकारी कर्मचारियों के लिए अनुसूचित जाति के लिए 13 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण का निर्देश दिया गया। रायपुर निवासी एस संतोष कुमार ने वकील योगेश्वर शर्मा के माध्यम से इस अधिसूचना को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका दायर की। याचिका में तर्क दिया गया कि पदोन्नति में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और आरक्षण नियमों के खिलाफ है और सरकार से इसे रद्द करने की मांग की गई।


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अधिसूचना पर लगाई रोक:

2 दिसंबर, 2019 को एडवोकेट जनरल सतीश चंद्र वर्मा ने इसे तैयार करने में गलती स्वीकार की। हाईकोर्ट ने इस गलती को सुधारने के लिए एक हफ्ते का समय दिया। मामले में कोई कार्रवाई नहीं करने पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश P R रामचन्द्र मेनन और न्यायमूर्ति P P साहू की खंडपीठ ने अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश दिया और सरकार को नियमों के अनुसार दो महीने के भीतर फिर से नियम बनाने का निर्देश दिया।


सरकार ने आरक्षण पर रोक को संशोधित करने या रद्द करने की मांग की। साथ ही दलील दी कि आरक्षण पर रोक हटाने से आरक्षित श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की चार साल से रुकी पदोन्नति आगे बढ़ सके। हस्तक्षेपकर्ताओं ने SC के 1 मई, 2023 के अंतरिम आदेश के अनुसार लंबित पदोन्नति आदेश जारी करने की तात्कालिकता का हवाला देते हुए 2019 के आदेश में संशोधन की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि इस देरी से उनके करियर की प्रगति पर असर पड़ा है।


हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका ये कहते हुए खारिज कर दी कि 2019 के आदेश से वरिष्ठता के आधार पर नियमित पदोन्नति में किसी तरह की बाधा पैदा नहीं होती है। कोर्ट ने ये भी कहा कि इस तरह के संशोधन के लिए पहले कोई औपचारिक आवेदन दायर नहीं किया गया था। हाईकोर्ट ने मामले में अंतिम सुनवाई के लिए जनवरी 2024 का समय दिया है।

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