सुप्रीम कोर्ट में पूर्व आईपीएस अधिकारी भानुप्रताप बरगे द्वारा महामारी से लड़ रहे पुलिसकर्मियों के वेतन में कटौती को चुनौती देने वाली याचिका पर जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस वीआर गवई की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को सरकार के पास ही जाने का निर्देश दिया।

याचिका में कहा गया था कि अपनी जान जोखिम में लगाकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं । फिर भी पुलिसकर्मियों के वेतन में कटौती की जा रही हैं । जबकि पुलिसकर्मियों को इस काम के लिए अतिरिक्त भत्ता दिया जाना चाहिए। लेकिन पीठ ने कहा कि अनुच्छेद-32 के तहत नीतिगत फैसले से संबंधित होने के चलते ऐसी याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।

सरकार के हर फैसले को कोर्ट में चुनौती देने के चलन पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा –

 कोरोना महामारी की वास्तविक स्थिति से सरकार बेहतर तरीके से अवगत है और अपना काम कर रही है, ऐसे में सरकार के ऊपर सरकार क्यों होनी चाहिए।
बेहतर होगा कि सरकार को अपना काम करने दिया जाए।

कोरोना से सम्बंधित समस्या के अलावा अन्य याचिकाएं नहीं आ रही 

बरगे की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत कामत ने पीठ से कहा कि एक समान नीति होने के बावजूद कई राज्य पुलिस अधिकारियों का वेतन काट रहे हैं। इस पर पीठ ने कहा कि यह नीतिगत मामला है। पीठ ने कहा कि यह सरकार पर निर्भर है कि वह इस पर विचार करे या न करे। पीठ के सदस्य जस्टिस कौल ने अधिवक्ता से यह सवाल पूछा, की क्या अनुच्छेद-32 के तहत ऐसी याचिका दायर की जा सकती है। दरअसल समस्या इस बात की है कि सभी लोग कोरोना मामले में विशेषज्ञ बन गए है। कोरोना समस्या को छोड़ अन्य याचिकाएं नहीं आ रही हैं।

बेहतर होगा कि सरकार को अपना काम करने दिया जाए
सरकार स्थिति से अच्छी तरह अवगत

जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि सभी लोग कठिन वक्त से गुजर रहे हैं। सरकार स्थिति से अच्छी तरह अवगत है। बेहतर होगा कि सरकार को अपना काम करने दिया जाए।
सरकार के ऊपर कोई सरकार नहीं होनी चाहिए। जस्टिस कौल ने कहा, लोगों के पास कोई काम नहीं है तो वह ऐसी याचिका दायर कर काम को ईजाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की याचिका देखकर हमें दुख होता है। औऱ इसके बाद याचिका को खारिज कर दिया गया।

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