सुप्रीम कोर्ट ने आम को लेकर हुई बच्चों की लड़ाई के बाद हत्या के 40 साल पुराने मामले में तीन लोगों को बड़ी राहत दी है। शीर्ष कोर्ट ने इस मामले में उम्रकैद की सजा को घटाकर सात साल की जेल की सजा कर दी है। शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि ये हत्या सुनियोजित तरीके से जानबूझकर नहीं की गई थी। बल्कि यह गैरइरादतन हत्या थी। गैर इरादतन हत्या जैसे छोटे अपराध के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। बता दें कि शीर्ष कोर्ट ने यह फैसला 24 जुलाई को सुनाया था, लेकिन इसे अब सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड़ किया गया।
अब मामले में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता, मृतक पर लगी चोटों की प्रकृति और इस्तेमाल किए गए हथियार की प्रकृति पर विचार करते हुए यह साफ होता है कि यह वास्तव में गैर इरादतन हत्या का मामला है और यह हत्या नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि मामले में सभी चश्मदीदों के बयान से यह रिकॉर्ड में आ गया है कि यह पूर्व नियोजित हत्या का मामला नहीं है। ऐसे में हम हम आईपीसी की धारा 302 (हत्या) को आईपीसी की धारा 304 भाग-1 में बदल देते हैं। ऐसे में सभी अपीलकर्ताओं की आजीवन कारावास की सजा को सात साल के कठोर कारावास के साथ बदला जाता है। साथ ही प्रत्येक अपीलकर्ता को 25,000 रुपये का जुर्माना देना होगा, जो उन्हें आज से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर जमा करना होगा।
गौरतलब है कि 1984 में उत्तर प्रदेश के एक गांव में आम को लेकर बच्चों के बीच हुई मामूली लड़ाई के बाद तीन लोगों पर एक साथी ग्रामीण के सिर पर लाठी मारकर हत्या करने का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में गोंडा जिले की ट्रायल कोर्ट ने 1986 में उन्हें हत्या का दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। जहां 2022 में हाईकोर्ट ने राज्य के गोंडा जिले की ट्रायल कोर्ट द्वारा उन्हें दी गई सजा को बरकरार रखा। हालांकि हाई कोर्ट के सामने अपील लंबित रहने के दौरान पांच में से दो दोषियों की मृत्यु हो गई। जिससे उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई। हाईकोर्ट के बाद याची ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। जहां अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें राहत दी है।