राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव एवं न्यायाधीश मदनगोपाल व्यास की खंडपीठ ने कुंभलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य के मध्य में स्थित बस्ती के निवासियों के विस्थापन को लेकर सरकार को अहम आदेश दिया है।
कोर्ट ने कुंभलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य के मध्य में स्थित बस्ती खरनी टोकरी के निवासियों को पुनः जंगल के बाहर स्थापित करने की मांग करने वाली याचिका पर सरकार को तीन माह में बस्ती वासियों के आवेदन पर उचित कार्रवाई करने एवं आवेदनों पर विस्थापन के आदेश पारित करने का आदेश दिया है।
जंगल निवासियों की तरफ से पैरवी करते हुए अधिवक्ता ऋतुराज सिंह राठौड़ ने न्यायालय को बताया कि याचिकाकर्ताओं के पूर्वज अभ्यारण्य घोषित होने से पूर्व जंगल के अंदर निवास कर रहे हैं। 1971 में जंगल को अभ्यारण्य क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। अब क्षेत्र के अभ्यारण्य घोषित होने की वजह से जंगल वासियों को सड़क, बिजली, पानी आदि की मूलभूत सुविधा नहीं मिल पा रही है एवं अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।
अधिवक्ता ने बताया कि राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण एनटीसीए, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून द्वारा भी कुंभलगढ़ में बाघों को बसाने के लिए सर्वे किया गया था। जिसमें सुझाव दिया गया था कि खरनी टोकरी बस्ती को जंगल से बाहर स्थापित किया जाना चाहिए। एनटीसीए द्वारा भी कुंभलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व बनाए जाने हेतु सैद्धांतिक मंजूरी दी जा चुकी है।
अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि सरकार द्वारा 2002 में राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्य के अंदर स्थित गांव के विस्थापन को लेकर योजना बनाई गई है, जिसके तहत खरणी टोकरी बस्ती के निवासियों का विस्थापन किया जाना चाहिए। सुनवाई के बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि बस्ती वासियों के आवेदन पर एनटीसीए के सुझावों एवं राज्य सरकार के विस्थापन योजना 2002 के अंतर्गत बस्ती वासियों को जंगल के बाहर विस्थापित किया जाए। इस संबंध में आवेदन प्राप्त होने के 3 महीने के अंदर उचित कार्रवाई करते हुए आदेश पारित करने के निर्देश दिए गए हैं।
साथ ही साथ माननीय न्यायाधीश मनिंदर मोहन श्रीवास्तव ने यह गौर फरमाया कि इन जंगल के इलाकों में निवास करने वाले आदिवासियों को सरकार की योजनाओं की जानकारी नहीं होती है। अतः राज्य विधिक सेवा आयोग को भी सुझाव दिया गया कि विस्थापन एवं अन्य प्रकार की सरकारी योजनाओं का व्यापक प्रचार प्रसार करने हेतु वह इन जंगल क्षेत्र में, आदिवासी क्षेत्रों में जागरुकता अभियान चलाए। आदेश की एक प्रति मुख्य सचिव वन विभाग एवं राज्य विधिक सहायता प्राधिकरण को भेजे जाने के भी निर्देश दिए।