नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में हुई यह यह घटना भले ही अटपटी लगे पर सत्य है। याचिका सूचीबद्ध होंने में देरी होने के कारण एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत तब मिली जब वह जेल जा चुका था। तमिलनाडु के इस शख्स की अग्रिम जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट में 45 दिन बाद सूचीबद्ध हुई तो कोर्ट ने कहा कि उसे गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि तब तक वह जेल जा चुका था।
जस्टिस एएम खानविलकर की पीठ के समक्ष शुक्रवार को याचिका सूचीबद्ध थी। केस फाइल देखकर पीठ ने कहा कि अगर एक व्यक्ति पत्नी से विवाद नहीं सुलझा सका तो क्या उसे गिरफ्तार होना चाहिए ?
उस व्यक्ति के वकील को सुनने से पहले पीठ मान चुकी थी कि गिरफ्तारी से राहत मिलनी चाहिए। पीठ ने न केवल उसे गिरफ्तारी से राहत दी बल्कि उसकी पत्नी और तमिलनाडु पुलिस को नोटिस जारी किया। इस पर याची के वकील ने मुवक्किल के जेल में होने की जानकारी दी। उन्होंने बताया, 27 अगस्त को दाखिल अग्रिम जमानत याचिका 16 अक्टूबर को सूचीबद्ध हुई।
आगे अग्रिम जमानत याचिका दायर करने वालों के साथ ऐसा न हो इसके लिए वकील ने पीठ से किया अनुरोध
वकील ने पीठ से यह निर्देश देने की गुजारिश की कि रजिस्ट्री अग्रिम जमानत याचिका जल्द सूचीबद्ध करे। प्रयास होना चाहिए कि आगे अग्रिम जमानत याचिका दायर करने वालों के साथ ऐसा न हो। इस पर पीठ ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि ‘अब इस याचिका का मतलब ही नहीं रह गया है।’ इसके बाद पीठ ने याची को गिरफ्तारी से संरक्षण देने का आदेश डिलीट करवाया। पीठ ने कहा कि ‘याची चाहे तो अब नियमित जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया सकता है।’