उपभोक्ता का अधिकार

जब वस्तु के दोष या सेवा में कमी सिद्ध हो जाती है, तब उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार होते हैं –

दोष वाली वस्तु के बदले दोष रहित नई वस्तु लेना या

वस्तु सेवा के लिये दिया गया पैसा वापस लेना, या

नुकसान या क्षति के लिये प्रतिकर (मुआवजा लेना), या

उपभोक्ता द्वारा खरीदे गये सामान या वस्तु के कारण हुई मानसिक क्षति का भी दावा कर सकता है।

शिकायत करने की समय सीमा-

उपभोक्ता द्वारा वस्तु में दोष पाए जाने या सेवा से नुकसान होने के 2 साल के भीतर शिकायत की जा सकती है। परंतु फोरम इसके बाद शिकायत करने की अनुमति दे सकता है, अगर देरी का कारण उचित हो।

अपील

जिला उपभोक्ता फोरम के विरूद्ध अपील राज्य उपभोक्ता कमीशन, राज्य उपभोक्ता कमीशन के विरूद्ध अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन में की जाती है। और राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में की जाती है। अपील आदेश के तीस दिन के भीतर की जा सकती है। अपील के साथ आदेश प्रमाणित छायाप्रति भी प्रमाणित छायाप्रति भी लगाना जरूरी है।

खाद्य पदार्थों में मिलावट (रोकथाम और निवारण) अधिनियम, 1954

मिलावटी खाघ पदार्थ क्या है-

  •  विक्रेता द्वारा बेचा गया कोई पदार्थ जो कि खरीददार की आशा से कम प्रकृति, गुण या महत्व का हो।
  • अगर पदार्थ में कोई मिलावट हो कि उसके गुण, महत्व को प्रभावित कर या जिससे कोई हानि होती हो।
  • अगर कोई सस्ता पदार्थ उस खाद्य पदार्थ में मिलाया गया हो, जिसमें उसके गुण और महत्व में कमी हो तथा वह हानिकारक हो।
  • अगर कोई पदार्थ अस्वच्छ में तैयार, पैक या रखा गया है, जिसमें वह गंदा या रोगमुक्त हो।
  • अगर पदार्थ में किसी प्रकार विष या कोई हानिकारक वस्तु मिली हो, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो।
  • जिस डिब्बे में पदार्थ रखा गया हो, अगर वह डिब्बा किसी ऐसी चीज से बना है, जिससे वह पदार्थ जहरीला या स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो जाये।
  • अगर पदार्थ में प्रतिबंधित रंग या अनुमति से अधिक मात्रा में रंग मिलाया गया हो।
  • अगर पदार्थ का गुण, महत्व या उसकी शुद्धता तय किये गये मानक से कम हो।
  • दूध में पानी मिलावट, खाद्य पदार्थ में मिलावट के अंर्तगत आती है।

निम्नलिखित परिस्थितियों में खाद्य पदार्थों को गलत नाम देना माना जायेगा-

  • अगर उसका नाम किसी दूसरे पदार्थ से ऐसे मेल खाता हो कि ग्राहक को धोखा हो जाए।
  • अगर झूठ बोलकर उस पदार्थ को विदेशी बताया गया हो।
  • अगर वह किसी और पदार्थ के नाम से बेचा जाए।
  • अगर उसमें किसी भी प्रकार का बदलाव करके उसको ज्यादा मूल्य का दिखाया जाए।
  • अगर उसके लेबल पर पैकेट के अंदर की वस्तुओं का विवरण न दिया गया हो। या गलत विवरण दिया गया हो।
  • अगर उसका लेबल किसी झूठे व्यक्ति या कम्पनी द्वारा बनाये जाने के बारे में बताता हो।
  • अगर यह पोषक आहार के रूप में बनाया गया हो और उसका लेबल उसमें प्रयोग की गई सामाग्रियों के बारे में बताता हो।
  • अगर उसमें कोई भी बनावटी रंग, खूशबू या स्वाद का प्रयोग हुआ हो,जिसके बारे में लेबल पर न लिखा गया हो।
  • अगर उसका लेबल इस अधिनियम के अंदर बनाये गये नियमों के अनुसार न हो।

खरीददार (उपभोक्ता) के अधिकार-

इस अधिनियम के अंदर खरीददार या खरीददारों का संघ किसी भी खाद्य पदार्थ को सरकार प्रयोगशाला में जांच करवा सकता है। जिसके लिए उसको निर्धारित फीस देनी पड़ेगी। जांच में अगर खाद्य पदार्थ में किसी प्रकार की मिलावट पायी गई तो खरीददार संघ जांच के लिए दी गई फीस वापस पाने का हकदार है।

● टी पदार्थ जो कि स्वास्थ्य और शुद्धता के लिए हानिकारक हो, उसके आयात करने, बनाने, बेचने या बांटने से प्रतिकूल असर हो। यदि खाद्य निरीक्षक को उस खाद्य पदार्थ के नमूने लेने और उसके विरूद्ध विभागीय कार्यवाही करने से रोका जाए।

● किसी भी खाद्य पदार्थ के लिए झूठी वारण्टी देना। उपभोक्ता के लिए कम से कम 6 माह और अधिकतम 3 वर्ष तक कारावास और कम से कम 1000 रूपये का जुर्माना भी हो सकता है।

भारतीय संविधान के अंतर्गत उपभोक्ता का शोषण, मिलावटी वस्तुओं और सेवाओं की कमी से संरक्षण देने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य है कि प्रत्येक उपभोक्ता को शीघ्र व सरल तरीको से कम धन खर्च कर के न्याय मिल सके।


उपभोक्ता फोरम वस्तु की कीमत और कार्यवाही का कारण पैदा होने के स्थान के आधार पर तीन प्रकार के होते है।

जिला उपभोक्ता फोरम-

प्रत्येक जिले में उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम का गठन किया गया है। उपभोक्ता द्वारा 20 लाख तक की कीमत क्षतिपूर्ति का दावा जिला

उपभोक्ता फोरम में शिकायत करके किया जा सकता है।

जिला उपभोक्ता फोरम का एक अध्यक्ष होता है एवं दो सदस्य होते हैं। जिनमे एक महिला सदस्य एवं एक पुरूष का होना अनिवार्य है।

राज्य उपभोक्ता कमीशन-

राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन प्रत्येक राज्य में होता है। जब वस्तु की कीमत,सेवा अथवा प्रतिकार (मुआवजा) 20 लाख से 1 करोड रूपये

तक हो तो, राज्य उपभोक्ता कमीशन मे शिकायत कर सकते हैं

राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन-

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन का क्षेत्राधिकार 1करोड रूपये से अधिक मूल्य की वस्तु सेवा या प्रतिकार (मुआवजा) के लिये होता है।

शिकायत कहां दर्ज करायी जा सकती हैं-

  • जहां पर वाद का कारण पैदा हुआ हो।
  • जहां दूसरा पक्ष रहता हो।
  • जहां दूसरा पक्ष अपना व्यवसाय करता हो।

शिकायत कौन व्यक्ति कर सकता है-

कोई भी उपभोक्ता जब कोई समान खरीदता है, और उसके खराबी या कमी होने के कारण उसका नुकसान होता है, या कोई सेवा उपलब्ध कराने के लिए उसे फीस देता है और सेवा में कमी होती है, तो उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराया जा सकता है या दावा दायर कर सकता है।

यद्यपि अधिनियम में डॉक्टर वकील आदि का उल्लेख नहीं है। परंतु जब ऐसे व्यावसायिक व्यक्तियो को पैसा देकर सेवा प्राप्ति की जा सकती है और उसके कमी होने के कारण नुकसान होता है, तो उसके विरूद्व भी उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जा सकती है।

शिकायत के लिए आवेदन-पत्र कौन दे सकता है-

  1. कोई भी उपभोक्ता 2 कोई भी उपभोक्ता जो कि भारतीय कम्पनीज अधिनियम 1956 के अंतर्गत रजिस्टर्ड हो।
  2. राष्ट्रीय अथवा राज्य सरकार 4 कई उपभोक्ताओं के समान हित के लिए कोई एक या अधिक उपभोक्ता।

शिकायत में निम्नलिखित सूचनाएं होनी चाहिए-

  • शिकायतकर्ता का नाम और पता
  • दूसरे पक्ष का नाम और पता।

आरोपों के समर्थन में निम्नलिखित दस्तावेतों का होना आवश्यक है-

  • कोई भी सामान या वस्तु खरीदने की पक्की रसीद पूर्ण विवरण सहित ।
  • वारण्टी कार्ड की छायाप्रति।
  • शिकायतकर्ता द्वारा मांगा गया प्रतिकर (मुआवजा)
  • शिकायतकर्ता या उसके ऐजेंट द्वारा शिकायती प्रार्थना पत्र पर नाम, पता और हस्ताक्षर।

इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत करने का तरीका अत्यंत सरल है। कोई भी उपभोक्ता शिकायतकर्ता के रूप में स्वयं या अपने प्रतिनिधि द्वारा शिकायत कर सकता है।

शिकायत डाक द्वारा भी भेजी जा सकती है। शिकायत करने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होता है और न ही किसी वकील की आवश्यकता होती है। शिकायतकर्ता स्वयं अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है।

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